भगीरथ की विनती पर गंगा शिव की जटा से पतली धारा में निकली : रविशंकर गुरूभाई
कौमारी माता मंदिर के वार्षिकोत्सव के उपलक्ष्य में श्रीमद्भागवत कथा
अखिलेश राय, सम्पादक व प्रभारी (उत्तर प्रदेश ):गोण्डा। शहर के कौमारी माता मंदिर के वार्षिकोत्सव के उपलक्ष्य में चल रहे श्रीमद्देवी भागवत कथा में कथा पीठाधीश्वर रविशंकर महाराज गुरु भाई ने सप्तम दिवस श्री गंगा अवतरण एवं हिरण्याक्ष वध की कथा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि जब तेजी के साथ धरती पर आने लगी तभी महादेव जटाधारी शिव जी ने अपनी जता में समाहित कर लिया। पश्चात शिव जी की वंदना भगीरथ द्वारा करने पर धीरे-धीरे गंगा को मुक्ति किया गया। गंगा को अभिमान हो गया था कि उसके वेग को धरती पर कोई नहीं रोक सकता है।
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गंगावतरण से तात्पर्य है कि ‘गंगा का पृथ्वी पर अवतरण’। अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशीय लोक कल्याण हितैषी भागीरथ के तप के बल पर पापनाशिनी गंगा का मृत्यु लोक में आगमन हुआ। भगीरथ के कुल के राजा सगर के पुत्र जो कि संख्या में 60,000 थे, वे श्राप वश मुनि कपिल के कोप से जलकर राख हो जाने के वजह से अकाल मृत्यु के भागी बने । जहां जलकर उनका शरीर राख हो गया था उस स्थान पर 60,000 राख की अलग अलग ढेर लग गईं थी। मोक्षदायिनी गंगा के पवित्र जल में डूबते ही राजा भगीरथ के सभी पूर्वज शांति को प्राप्त हुए। कथा के अगले प्रसंग में हिरण्याक्ष वध की कथा सुनाते हुए पूज्य कथा व्यास ने बताया कि,हिरण्यकशिपु एक दैत्य था जिसकी कथा पुराणों में आती है। उसका वध विष्णु अवतारी नृसिंह द्वारा किया गया। यह “हिरण्यकशिपु वन” नामक स्थान का राजा था৷ हिरण्याक्ष उसका छोटा भाई था। जिसका वध वाराह रूपी भगवान विष्णु ने किया था। कथा में प्रस्तुत देवी की झांकी पर श्रोताओं ने करतल ध्वनि से देवी के प्रति श्रद्धा व्यक्त किया।
इस अवसर पर मुख्य जजमान श्रीमती सीता पत्नी विश्वकर्मा कसौधन, सुखदेव गुप्ता, पप्पू, अरुण मिश्रा, प्रकाश आर्य हीरो सभासद, डॉक्टर अमित गुप्ता, जितेश सिंगल,समाजसेवी संदीप मेहरोत्रा,डॉक्टर परमानंद, कृष्ण मोहन अग्रवाल, रमेश गुप्ता,दीपेंद्र मिश्रा, अरविंद प्रजापति,अजय मिश्रा, पप्पू सोनी, दीपक गुप्ता, डॉक्टर किशन जयसवाल, के पी सिंह, संजय गुप्ता, डॉक्टर अनिल आदि मौजूद रहे।