सुप्रीम कोर्ट- सरकारों के पास मुफ्त सुविधाओं के लिए पैसा उपलब्ध है, लेकिन जजों को वेतन देने में वित्तीय बाधा।

अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि मुफ्त खोरी की संस्कृति को एक विचलन माना जा सकता है। वित्तीय बोझ के संबंध में व्यावहारिक चिंताओं की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया। एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता परमेश्वर ने संविधान के अनुच्छेद 309 का वाला देते हुए तर्क दिया है कि इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायपालिका के पास इस मामले में कोई कहने का अधिकार नहीं है। परमेश्वर ने कहा है कि अगर हम अधिक विविधता पूर्ण न्यायपालिका चाहते हैं तो मुझे लगता है कि हमें अपने न्यायाधीशों को बेहतर वेतन देने और अपने न्यायाधीशों के बेहतर देखभाल करने की आवश्यकता है। नई पेंशन योजना का हवाला देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि सरकार ने समय के साथ राज्य के खजाने पर पड़ने वाले संचयी वित्तीय बोझ सहित कई कारकों को ध्यान में रखा है।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ)TV 9 भारत समाचार नई दिल्ली ‌।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि ऐसा लगता है कि राज्य सरकारों के पास उन लोगों को मुक्त सुविधा देने के लिए पर्याप्त पैसा है, जो काम नहीं करते, लेकिन वह ज़िला न्यायपालिका के जजों के वेतन और पेंशन के संबंध में वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हैं। यह मामला जस्टिस बी आर गवई और एजी मसीह की पीठ के समक्ष आया। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटर मणी ने पीठ के समक्ष दलील दी है कि न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्त लाभों के संबध में निर्णय लेते समय सरकार को वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होंगा।

अगले महीने दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों  द्वारा किए गए वादों की ओर इशारा किया है। महाराष्ट्र सरकार की लाडली बहना योजना का भी हवाला दिया है। सरकार के पेंशन देनदारी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। उन्होंने जोर देकर कहा है कि वेतन पेंशन तय करते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार किया जाना चाहिए। राज्य सरकारों के पास ऐसे लोगों को भुगतान देने के लिए पर्याप्त पैसा है, जो कुछ काम नहीं करते हैं, लेकिन जब जिला न्यायपालिका से संबंधित मामला आता है तो वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हैं‌। पीठ ने आगे कहा है कि हमारे पास अब किसी न किसी पार्टी की ओर से घोषणाएं है कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो वह ₹25,000 भुगतान करेंगे।

अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि मुफ्त खोरी की संस्कृति को एक विचलन माना जा सकता है। वित्तीय बोझ के संबंध में व्यावहारिक चिंताओं की ओर से अदालत का ध्यान आकर्षित किया गया है। एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता परमेश्वर ने संविधान के अनुच्छेद 309 कहां वाला देते हुए तर्क दिया है कि इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायपालिका के पास इस मामले में कोई कहने का अधिकार नहीं है। परमेश्वर ने कहा है कि अगर हम अधिक विविधतापूर्ण न्यायपालिका चाहते हैं तो मुझे लगता है कि हमें अपने न्यायाधीशों को बेहतर वेतन देने और अपने न्यायाधीशों की बेहतर देखभाल करने की आवश्यकता है।

नई पेंशन योजना का हवाला देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि सरकार ने समय के साथ राज्य के खजाने पर पड़ने वाले संचयी वित्तीय बोझ सहित कई कारकों को ध्यान में रखा है। सर्वोच्च न्यायलय अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा 2015 में दायर एक याचिका पर विचार कर रहा था। इसमें पहले पाया था कि भारत में जिला न्यायाधीशों को देय पेंशन दरें बहुत कम है। सर्वोच्च न्यायलय कल मामले की सुनवाई जारी रखेगा।

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