सुप्रीम कोर्ट ने केरल एचसी के फैसले पर लगाई रोक, दुर्लभ बीमारी के लिए केंद्र को पैसे देने का था आदेश, जानें पूरा मामला….

स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी एक दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी है। इसमें मांसपेशियां लगातार कमज़ोर होती जाती हैं। और इनका श्रय होते जाता है। यह बीमारी उन तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करती है जो मांसपेशियों की स्वैच्छिक गतिविधियों को नियंत्रित करती है।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ ) TV 9 भारत समाचार नई दिल्ली। 

सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उसे आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिसमें केंद्र सरकार को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी से पीड़ित मरीज को 50 लाख रुपए की सीमा से परे 18 लाख रुपए की अतिरिक्त दवाइयां मुहैया कराने का निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस…………

सरकारी नीति के तहत केंद्र सरकार जरूरतमंद मरीज़ को इलाज के लिए 50 लाख रुपए दे सकती है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने 24 फरवरी को केंद्र सरकार की याचिका पर प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया। इसमें कहा गया है कि 17 अप्रैल 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में नोटिस जारी कर जवाब मांगा जाएं। मामले में सुनवाई के अगली तारीख तक विवादित फैसले के आदेश पर रोक रहेंगी।

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हाई कोर्ट ने 6 फरवरी को निर्देश दिया था कि 24 वर्षीय मरीज़ सेबा पीए को निरंतर इलाज सुनिश्चित करने हेतु स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी की दवा  “रिसडिप्लम” मुहैया की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह लगातार जारी रहना चाहिए कि जब तक की इस दवा की अधिक कीमत का मामला एकल जज की पीठ में सुनी नहीं जाती है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कम से कम 1 महीने का समय लगने की उम्मीद है।

हाई कोर्ट के समक्ष सेबा की याचिका में रिसडिप्लम की अत्यधिक लागत पर प्रकाश डाला गया। इस दवा की कीमत 6.2 लाख रुपए प्रति बोतल है। केंद्र की ओर से दलित की गई है कि 20 किलोग्राम तक वजन वाले मरीजों को प्रति माह 01 बोतल तक की आवश्यकता होती है। जबकि अधिक वजन वाले मरीजों को तीन बोतलों तक की आवश्यकता हो सकती है‌। इससे दीर्घकालिक उपचार आर्थिक रूप से अव्यावहारिक हो जाता है।

सेबा की ओर से वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि सरकार या तो दवा निर्माता के साथ बातचीत करके या पेटेंट अधिनियम, 1970 के प्रावधानों को लागू करके उपचार की लागत को कम करने के लिए कदम उठा सकती थी। उन्होंने दलील दी कि चीन और पाकिस्तान जैसे देश ने इस बीमारी के उपचार की कीमत कम करने के लिए दवा निर्माता के साथ सफलता पूर्वक बातचीत की थी। उन्होंने सवाल किया था कि भारत ने इसी तरह के कदम क्यों नहीं उठाए?

हालांकि पीठ ने कहा कि हो सकता है भारत सरकार ने “अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव ” के कारण ऐसे उपायों से परहेज किया हों।

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