सपा के निर्णय से सियासी भंवर में फंसी स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी की सियासी विरासत

सपा ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाकर स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने दुविधा पैदा कर दी है।

मुकेश कुमार क्राइम एडिटर इन चीफ TV9 भारत समाचार  लखनऊ  (उत्तर प्रदेश)।  लोकसभा चुनाव अब सिर पर है। कभी भी लोकसभा चुनाव का बिल्कुल बज सकता है। सभी राजनीतिक पार्टियां लोकसभा चुनाव में विजय पताका फहराने के लिए कमर कसकर जुट गई है। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर 16 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।

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इस घोषणा ने चुनावी वैज्ञानिक स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी सांसद संघमित्रा मौर्य की सियासी नाव को सियासी भंवर में फंसा दिया है। स्वामी अपनी बेटी के सियासी भविष्य के लिए कौन सा रास्ता तय करेंगे। यह सवाल राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है।

फिलहाल स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने अपने और बेटी संघमित्रा के सियासी भविष्य का सवाल खड़ा है। सियासी पंडित बताते हैं, कि सपा ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाकर स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने दुविधा पैदा कर दी है। कि वह अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ायें या पार्टी धर्म का पालन करें।

संघमित्रा मौर्य साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट से पहली बार बदायूं की सांसद बनी थी। इस चुनाव में संघमित्रा को जीतने के लिए स्वामी प्रसाद ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अचानक स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा छोड़कर सपा में चले गए थे।

स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा के खिलाफ कुशीनगर से चुनाव भी लड़े। उस समय संघमित्रा ने अपनी पार्टी बीजेपी का साथ न देकर पिता के पक्ष में प्रचार किया था। इस बात का स्थानीय स्तर पर काफी विरोध होने के बावजूद भाजपा ने संघमित्रा को पार्टी से नहीं निकला था।

संघमित्रा अभी भाजपा में खूब सक्रिय नजर आ रही है। यदि भाजपा ने संघमित्रा को एक बार फिर से बदायूं से टिकट देती है तो संघमित्रा और धर्मेंद्र यादव आमने-सामने होंगे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य क्या करेंगे।

स्वामी प्रसाद मौर्य बेटी संघमित्रा का साथ देंगे या पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा साबित करते हुए धर्मेंद्र यादव के पक्ष में प्रचार करेंगे। स्वामी प्रसाद मौर्य की एक के बाद एक सनातन धर्म पर टिप्पणियों से धर्म प्रेमियों में उनके प्रतीक खासी नाराजगी है।

आपको बता दें, कि स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी संघमित्रा की सियासत बड़ी दुविधा भरी है। इसके जिम्मेदार कहीं ना कहीं स्वामी प्रसाद मौर्य खुद ही है। अच्छा खासा स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा में कैबिनेट मंत्री थे। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा छोड़कर पार्टी के सामने काफी बड़ा संकट खड़ा कर दिया था।

इसमें बेटी संघमित्रा ने भी उनका ही साथ दिया था। संघमित्रा अपनी पार्टी छोड़ सपा की कार्यकर्ता बन गई थी। वहां तक तो फिर भी ठीक था लेकिन बाद में स्वामी प्रसाद ने सनातन के खिलाफ जो बयान बाजी की है। वह उनके लिए और भी घातक होती जा रही है।

उसको दोनों तरफ के लोग नहीं पचा पा रहे हैं। बताते चलें कि 2019 में भाजपा की संघमित्रा मौर्य ने सपा मुखिया अखिलेश यादव के भाई और सपा के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव को 30 हजार वोटो से हराया था। जहां भाजपा की संघमित्रा को 5 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। वहीं सपा से धर्मेंद्र यादव को 4 लाख 91 हजार वोट मिले थे।

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