सपा में चल रही अंतर्कलह, बदायूं के चुनावी मैदान में अब तक नहीं उतरे शिवपाल यादव

सांसद डा. संघमित्रा मौर्य का टिकट होल्ड किये जाने से संघमित्र मौर्य के सामने असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

मुकेश कुमार  (क्राइम ऐडिटर इन चीफ) TV9 भारत समाचार  बांयी (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में चुनावी हलचल बढ़ती जा रही थी। लेकिन इस समय भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी की चुनावी गतिविधियां ठहर गई है। बदायूं लोकसभा सीट पर काबिज भाजपा टिकट में उलझ गई है। मौजूदा सांसद डॉक्टर संघमित्रा मौर्य टिकट को लेकर अस्वस्थ दिख रही थी। लेकिन पहली सूची में जिले का नाम न होने से संघमित्रा ने दिल्ली में डेरा डाल दिया है। टिकट के दूसरे दावेदार भी जिले में नहीं दिख रहे हैं।

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दूसरी ओर सपा ने महीने भर पहले प्रत्याशी का नाम घोषित कर दिया था। चुनावी गतिविधियां बढ़ने लगी थी। लेकिन अचानक टिकट बदल दिया, जिससे चुनाव प्रचार की रफ्तार थम गई। 17 दिन गुजर चुके हैं, लेकिन न तो सपा के प्रत्याशी शिवपाल सिंह यादव अभी तक पहुंचे हैं, और ना ही पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव ही लौटकर आए हैं। अब लग रहा है, कि आचार संहिता लागू होने के बाद ही चुनावी गर्माहट शुरू होगी। संसदीय सीट बदायूं पर वर्तमान में भाजपा काबिज है।

हालांकि लंबे समय तक इस सीट पर सपा का कब्जा रहा है। पिछले महीने चुनावी गहमा गहमी बढ़ने लगी थी। सपा ने यहां से दो बार सांसद रह चुके धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतार दिया था। धर्मेंद्र यादव ने जनसंपर्क अभियान भी शुरू कर दिया था। पिछले चुनाव की कमियों को दूर करने की कोशिश कर रहे थे। अचानक सपा ने धर्मेंद्र यादव का टिकट काटकर सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव को प्रत्याशी घोषित कर दिया।

इसके पीछे सपा में चल रही अंतर्कलह वजह मानी जा रही है। लेकिन जिम्मेदारों की ओर से अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है। टिकट बदलने के बाद सपा में सन्नाटा पसरा हुआ है। सत्ताधारी पार्टी भाजपा की बात करें तो पहली सूची जारी होने के पहले सांसद डॉक्टर संघमित्रा मौर्य अपना टिकट पक्का मानकर चुनाव अभियान में जुटी थी। लेकिन टिकट होल्ड  कर दिए जाने से असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है। हर किसी की निगाह दिल्ली में होने वाली केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक पर टिकी हुई है।

सांसद के अलावा टिकट के दूसरे दावेदारों ने भी अपना दावा मजबूत दिखाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। सियासी गलियारे में अपने-अपने हिसाब से कयास लगाए जा रहे हैं। पिछड़ा वर्ग से ही किसी को टिकट मिल सकता है। इसकी संभावना ज्यादा दिख रही है। पार्टी के जिम्मेदार कुछ बताने की स्थिति में नहीं है। उनका एक ही जवाब मिल रहा है, कि जिसे भी टिकट मिलेगा उसे ही जीता कर भेजेंगे ।

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