राजस्थान के नेताओं पर क्यों नाराज हुए राहुल गांधी
मंत्रियों की नजदीकियों पर बेंजा मेहरबानी की परिपाटी हर दौर में चलती है।
मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ) TV9 भारत समाचार जयपुर (राजस्थान)। सत्ता की अदली बदली होते ही भले ही पावर सेंटर्स में कुछ बहुत कुछ बदल जाता हो। लेकिन लंबे समय से चली आ रही कई परिपाटियां नहीं बदलती। मंत्रियों की नजदीकियों पर बेंजा मेहरबानी की परिपाटी हर दौर में चलती है।
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एक मंत्री जी के नजदीकीयों के नाम से विरोधियों ने टैक्स का नाम ही निकाल दिया। एक टैक्स का नाम सज्जन व्यक्ति से मिलता जुलता है। और दूसरे का नाम मंगलयान के रोवर से। प्रदेश के पूर्व मुखिया की सभा में उनके पूर्व सलाहकार ने जब दोनों टैक्स के नाम गिनाये तो चर्चाएं चल पड़ी।
खैर यह नई बात नहीं है। जब आज के विपक्षी राज में थे तो उनके मंत्रियों विधायकों के सहयोगियों पर भी ऐसे ही आरोप लगाते थे। अब आरोप लगाने वाले और आरोप झेलने वालों की भूमिकाओं की अदला बदली हो गई है।
प्रदेश के पूर्व मुखिया और युवा नेता के बीच भले ही सब कुछ ठीक-ठाक दिखे,लेकिन मन की टीस कभी ना कभी बाहर आ ही जाती है। पूर्व मुखिया के बेटे लोकसभा उम्मीदवार हैं। उन्होंने अपने पोस्ट में युवा नेता को गायब कर दिया। युवा नेता राजधानी के पास वाली सीट पर नामांकन के लिए गए। वहां उन्होंने पूर्व मुखिया के पोस्ट को गायब कर दिया।
सोशल मीडिया के जमाने में आजकल चीजे छिपती थोड़ी ही हैं, परंतु मायने निकलने शुरू हो जाते हैं। अब जितने मुंह उतने ही बातें हो रही हैं। पोस्ट से चेहरे गायब करने की यह सियासत नई-नहीं है। पहले भी इस पर खूब बातें हुई हैं। पिछले दिनों सत्ता वाले पार्टी के स्टार प्रचारकों का ब्योरा सार्वजनिक किया गया। सब नेताओं के नाम के आगे पद भी लिखे हुए थे।
बाबा के नाम से मशहूर मंत्री जी का पदनाम देखकर हर कोई चौक गया। बाबा को विधायक और मंत्री बने चार महीने हो गए। लेकिन पार्टी की लिस्ट में उनके नाम के आगे राज्यसभा सांसद लिखा हुआ था। स्टार प्रचारकों की लिस्ट के मामले में टाइपो एरर चर्चा का विषय जरूर बन गया गई है।
ब्यूरोक्रेसी के मुखिया टाइमिंग से लेकर अफसर के ड्रेसिंग सेंस तक पर नजर रख रहे हैं। पिछले दिनों एक बैठक में ब्यूरोक्रेसी के मुखिया ने अफसर को सोशल मीडिया पोस्ट करने रील बनाने पर रोक लगाते हुए सख्त हिदायत दे दी।
यह तक कह दिया की डीपी भी लगे तो जिम्मेदारी से और सलीके से । उसमें भी स्टाइल लगाई तो देख लेना। मुखिया के इस फरमान के बाद से सोशल मीडिया प्रेमी कई अफसर परेशान हैं। पता नहीं कब किस डीपी पर क्या परेशानी आ जाए। हालांकि यह नई बात नहीं है।
सरकारी अफसर कर्मचारी नियमों से बंधे हैं। सोशल मीडिया की उनकी सीमाएं हैं। मुखिया ने उन्हें सीमाएं ही याद दिलाई है। लेकिन इस जमाने में हदों को मानता कौन है। कई सोशल मीडिया प्रेमी अफसर इसे डिजिटल इमरजेंसी का नाम दे रहे हैं। विपक्षी पार्टी में पिछले दिनों राजधानी में प्रस्तावित बड़ी रैली की तैयारी पर बैठक बुलाई गई। रा
जधानी के आसपास की सीटों के सभी बड़े नेताओं को बैठक में बुलाया गया। बैठक में सबसे बड़ा मुद्दा भीड़ जुटाने का था। बड़े पदों पर रहे नेताओं से भीड़ का टारगेट और कितने लोग लेकर आएंगे इसके बारे में पूछा गया, तो सैकड़ो में संख्या गिनाने लगे। कई नेताओं ने जब सैकड़ो में लोग लाने की बात कही तो एक गर्म मिजाज वाले विधायक का पर चढ़ गया।
विधायक ने भारी बैठक में खरी खोटी सुना दी। कि जिस पार्टी की बदौलत सरकार में मंत्री रहे वे नेता सौ सौ लोग लेकर आएंगे। विपक्षी पार्टी ने इस बार जो टिकट बांटे उनमें कई जगह नए प्रयोग किये। लेकिन इसके चक्कर में दो भारी ब्लंडर भी कर दिए है। राजसमंद से उम्मीदवार को मान ना मान तू मेरा उम्मीदवार की तर्ज पर टिकट दिया।
एक भी ब्राह्मण, मुस्लिम को टिकट नहीं देने से भी नाराजगी खेलनी पड़ रही है। अजमेर में भी विवाद है। इन सब ब्लंडर को लेकर टॉप लेवल तक शिकायत की गई है। हाई कमान ने एक नेता को तालाब भी किया। इस पर सबसे बड़े प्रभावशाली पूर्व अध्यक्ष ने भी नाराजगी जताई है।
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