प्रयागराज महाकुंभ 2025: आस्था, परंपरा और सुव्यवस्था का अद्भुत संगम
महाराणा प्रताप महाविद्यालय, गोरखपुर में आयोजित हुई "महाकुंभ 2025: परंपरा, अनुष्ठान और महत्ता" विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी
रिपोर्ट : दिनेश चंद्र मिश्रा
गोरखपुर। प्रयागराज महाकुंभ 2025 का आयोजन अपने दिव्य और भव्य स्वरूप में विश्वभर में चर्चा का विषय बन चुका है। सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास धाम, अयोध्या के महंत आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण ने इसे अपूर्व और विलक्षण बताते हुए कहा कि यह आयोजन सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने कुशल नेतृत्व और सुव्यवस्थित प्रबंधन से इसे ऐतिहासिक बनाया है।
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धर्म, आस्था और परंपरा का महासंगम
महाराणा प्रताप महाविद्यालय, गोरखपुर में आयोजित “महाकुंभ 2025: परंपरा, अनुष्ठान और महत्ता” विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों और शोधकर्ताओं ने महाकुंभ की महत्ता पर विस्तृत विचार रखे। संगोष्ठी के पहले दिन विभिन्न देशों यूएसए, नेपाल, इजरायल और भूटान से पांच वक्ता ऑनलाइन जुड़े, जबकि कुल 70 प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया। तकनीकी सत्र में 18 शोधपत्र पढ़े गए, जिनमें प्रयागराज महाकुंभ के धार्मिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और प्रबंधकीय पहलुओं पर चर्चा की गई।
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में दिखी सुव्यवस्था की मिसाल
आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण ने कहा कि यह पहला महाकुंभ है, जिसे एक समर्पित नेतृत्व ने जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं प्रयागराज के चप्पे-चप्पे पर जाकर व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया, जिससे यह कुंभ एक आदर्श आयोजन बन गया।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के आचार्य प्रो. के. रामचंद्र रेड्डी ने महाकुंभ को आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की विशेष युति के समय स्नान का विशेष महत्व है। प्रो. रेड्डी ने कहा कि कुंभ स्नान के बाद सूर्य नमस्कार से स्वास्थ्य को और अधिक लाभ मिलता है।
रेलवे के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी एवं साहित्यकार रणविजय सिंह ने कहा कि महाकुंभ सनातन धर्म की अमृतत्व की अवधारणा का प्रत्यक्ष स्वरूप है। यह केवल स्नान का पर्व नहीं, बल्कि पाप से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है।
गंगा: जल नहीं यह है ब्रह्म द्रव
गंगा नदी की शुद्धता को लेकर उठ रहे सवालों पर आचार्य मिथिलेशनंदिनी ने कहा “गंगा को केवल जल मानना तर्कहीन है। यह ब्रह्म द्रव है, जो दिव्यता और पवित्रता का प्रतीक है।” उन्होंने गंगाजल के आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि घर में RO का पानी पीने वाले भी गंगाजल को बोतलों में भरकर ले जाते हैं, यह गंगा की शुद्धता का प्रमाण है।
भारत के सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक
त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल के संस्कृत आचार्य डॉ. सुबोध कुमार शुक्ल ने कहा कि प्रयागराज महाकुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि भारत के चिरंतन विचार का प्रतीक है। यह सनातन धर्म की एकात्मता और अखंडता का अद्भुत दर्शन कराता है।
डॉ. प्रदीप कुमार राव, प्राचार्य, महाराणा प्रताप महाविद्यालय, ने कहा कि महाकुंभ केवल स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं, बल्कि यह वैचारिक मंथन का भी केंद्र है। इस महाकुंभ के माध्यम से सनातन धर्म की वैश्विक पहचान को और अधिक मजबूती मिली है।
महाकुंभ: पुनर्जागरण का युग
प्रयागराज महाकुंभ 2025 इतिहास में आस्था के पुनर्जागरण काल के रूप में दर्ज होगा। यह आयोजन यह संदेश देता है कि भारत अपनी परंपराओं के साथ आधुनिकता का संगम कैसे करता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की संवेदनशीलता और प्रबंधन कौशल ने इसे दुनिया के सबसे सुव्यवस्थित धार्मिक आयोजनों में स्थान दिलाया है।
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, परंपरा और आस्था का उत्सव है। यह आयोजन न केवल आध्यात्मिक जागरूकता का प्रतीक है, बल्कि विश्वभर के लोगों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का माध्यम भी है। यह दिव्यता और भव्यता का ऐसा संगम है, जहां अनेकता में एकता, विज्ञान में आध्यात्म और सनातन धर्म की चिरकालिकता के दर्शन होते हैं।
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