नेपाल सीमा से रेलवे स्टेशन के बीच निजी गाड़ियों से हो रहा तस्करी का खेल, सेटिंग के सामने सिस्टम फेल
नेपाल से तस्करी में अब धंधे बाजू ने निजी गाड़ियों को टैक्सी के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
मुकेश कुमार (क्राइम ऐडिटर इन चीफ) TV9 भारत समाचार गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर रेलवे स्टेशन से नेपाल की सीमा तक तस्करी का खेल निजी गाड़ियों से फल फूल रहा है। नेपाल से तस्करी में अब धंधेवाजों ने निजी गाड़ियों को टैक्सी के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। रेलवे स्टेशन से रोजाना 70 से 100 ऐसी गाड़ियां फरेंदा, नौतनवां और निचलौल के रास्ते आती जाती है। नशीले पदार्थ के अलावा इनमें गोरखपुर से कपड़ा, चमड़े के समान को भेजा जाता है और नेपाल से इलायची, तेजपत्ता, जीरा, लौंग अन्य गरम मसाले मंगाये जाते हैं। कर चोरी के इस खेल में धन्धेबाज बोगस फॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। ताकि पकड़े जाने पर इनका नाम सामने ना आए। इन गाड़ियों को जांच के लिए रोका न जाए, इसका इंतजाम भी धन्धेबाजों ने कर रखा है। हर बैरियर पर उनका नेटवर्क है।
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गाड़ियों के मालिक बिचौलिए और सामानों की तस्करी करने वाले मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। दरअसल इन धंधे वालों का नेटवर्क इतना मजबूत है, कि उन्हें हर कार्रवाई की जानकारी पहले ही हो जाती है। एक साल पहले एक निजी गाड़ी से नेपाल से गोरखपुर भेजी जा रहे करोड़ों रुपए के चरस को पुलिस ने जप्त किया था। नेपाल में गरम मसाले की खेती होती है। इसमें इलायची तेज पत्ता, जीरा, लौंग अन्य गरम मसाले होते हैं। इन मसालो को भी इन्हीं गाड़ियों के माध्यम से हर दो से तीन दिन के अंतराल पर लाया जाता है। बोगस फर्मों का उपयोग करने वाले धन्धेबाज टैक्सी के रूप में चल रही निजी गाड़ी मालिकों पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
ट्रैवल एजेंट या निजी गाड़ी मालिक ही रास्ते में सेटिंग का नेटवर्क तैयार करते हैं। इस पूरे खेल की जानकारी इस धंधे से जुड़े एक शख्स से मिली। बातचीत में पता चला कि रेलवे स्टेशन से पूरी गाड़ी बुक कर नेपाल की सीमा तक चार चक्कर सुबह से शाम तक लगा लेते हैं और तीन से ₹4000 का मुनाफा इन्हें मिल जाता है। शुक्रवार सुबह 6:00 बजे रेलवे स्टेशन के पास इन गाड़ियों का यहां अड्डा है। वहां एक कार नजर आई गाड़ी पर सामने शीशे पर पुलिस के निशान का स्टीकर लगा था। पूछने पर ड्राइवर ने बताया कि गाड़ी रिज़र्व कर नेपाल जाना है। सवारी मिल जाएगी तब भी चले जाएंगे। रिजर्व कर जाने पर नेपाल के अंदर कही इंतजाम करवा देंगे।
किराया और बुकिंग को लेकर बातचीत के बाद फोन कर थोड़ी देर में बताने की बात कही। कुछ देर बाद उस गाड़ी की जगह दूसरी एक डिजायर गाड़ी खड़ी हो गई थी। यह सिलसिला सुबह से लेकर शाम तक ऐसे ही चलता रहता है। रेलवे स्टेशन चौराहे पर ही चौकी बनी है। इसके बाद नेपाल की तरफ जाने पर गोरखनाथ थाना, फरेंदा थाना और निचलौल और नौतनवां थाना पड़ता है। लेकिन पुलिस की नजर इन गाड़ियों पर नहीं पड़ती है। जबकि सड़क के एक किनारे नेपाल जाने वाली निजी नंबर की गाड़ियां लाइन लगाकर खड़ी रहती हैं। महाराजगंज नेपाल बॉर्डर पर सिंडिकेट बनाकर तस्करी की जा रही है।
सिंडिकेट वाले बॉर्डर के ठीक किनारे यह जमीन खरीद कर मकान बनवा लेते हैं। इस मकान में गोदाम और दुकान भी होती है। बॉर्डर के सहारे नेपाल के भीतर भारतीय कपड़े और नेपाल में तैयार किया फर्जी कंपनियों के नाम से तैयार खाद्य, श्रृंगार, गरम मसाला और अन्य उत्पाद मंगाये जाते हैं। नेपाल बॉर्डर में शर्ट की कीमत 500 होती है। लेकिन इसकी कीमत सीमा पार नेपाल में 800 होगी। नेपाल से भारत आकर तस्करी करने वाले 800 देकर शर्ट खरीदते हैं। उसे नेपाल में 1200 में बेच देंगे। ऐसे सीधे 400 का फायदा तस्कर को हो जाएगा। भारत नेपाल के बीच इन्हीं सीमाओं की पगडंडियों से अवैध सोना भी खफाया जाता है।
नेपाल से सोना गोरखपुर के हिंदी बाजार में प्रतिदिन खपाने वाले तस्कर भी काफी है। सूत्रों के मुताबिक स्कूटी से तस्कर नौतनवां और सीनौली से सीधे गोरखपुर जाकर अवैध सोना खापा देते हैं। नेपाल के मसाले को पगडंडियों के सहारे साइकिल बाइक या अन्य साधनों से लेकर सीमा पर बने गोदाम तक रखवा दिया जाता है। यहां से निजी गाड़ियों को सहारे से बिना जीएसटी रिकॉर्ड करके उन्हें व्यापारिक खपाने के लिए एकत्र कर ले जाते हैं। सूत्रों के मुताबिक तस्करी के नेटवर्क में शामिल नेपाल के स्थानीय लोग बॉर्डर पर पगडंडियों के साथ रास्ते साइकिल के सहारे स्कूल बैग या झोले में सोने के बिस्किट रखकर सोनौली और निचलौल पहुंचा देते हैं। इसके बाद नेटवर्क की दूसरी टीम सोना को गंतव्य तक पहुंचती है।
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