मंदिरों में वीआईपी संस्कृति,नेताओं पर कृपा बरसे ,आम श्रद्धालु दर्शन को तरसे।

प्रतिबंध के बावजूद महाकाल मंदिर के गर्भ ग्रह में जाकर पूजन करते श्रीकांत शिंदे।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ)TV 9 भारत समाचार उज्जैन (मध्यप्रदेश)। उज्जैन। वीआईपी संस्कृति के नाम पर भले ही लाल-पीली बत्ती का चलन कम हो गया हो ,मगर मंदिरों में इसका अच्छा- खासा प्रभाव आज भी देखने को मिल जाता है। मंदिरों में वीआईपी दर्शन की व्यवस्था ने धार्मिक और सामाजिक हलको में बहस को जन्म दिया है। कई लोग हिंदू धर्म की समावेशी आध्यात्मिक परंपराओं से अलग मानते हैं, वीआईपी दर्शन ,एक ऐसी प्रणाली है, जो प्रभावशाली व्यक्तियों और दानदाताओं को भगवान के लिए प्राथमिकता प्रदान करती है जबकि इसे कई लोग हिंदू धर्म की समावेशी आध्यात्मिक परंपराओं से अलग मानते हैं।

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गर्भ ग्रह में प्रतिबंध के बावजूद प्रवेश देने का सामने आया वीआईपी दर्शन का हालिया मामला महाकाल मंदिर के गर्भ ग्रह में प्रतिबंध के बावजूद प्रवेश देने का सामने आया है। इस बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पुत्र सांसद श्रीकांत शिंदे, उनकी पत्नी वह दो अन्य लोगों ने गर्भ गृह में प्रवेश कर पूजा अर्चना की। महाकाल मंदिर में वीआईपी द्वारा नियम तोड़ने का यह पहला मामला नहीं। गर्भ ग्रह में चारों करीब 6 मिनट रहे। महाकाल मंदिर में वीआईपी द्वारा नियम तोड़ने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी प्रतिबंध के बावजूद कहीं वीआईपी लोगों ने । गर्भ ग्रह में जाकर बाबा महाकाल के दर्शन किए थे ‌ प्रतिबंध के बावजूद लेकर भक्तों में भी खासी नाराजगी हैं, आम श्रद्धालुओं का कहना है कि मंदिर के गर्भ ग्रह में सभी का प्रवेश निषेध है तो फिर वीआईपी नेता और उनके परिवार के लोग गर्भ ग्रह में पहुंचकर पूजा-अर्चना क्यों कर रहे हैं। महाकाल मंदिर के करीब 14 महीने से गर्भ गृह प्रवेश करने पर रोक लगी हुई है। महाकाल महालोक बनने के बाद से उज्जैन काफी चर्चा में आ गया ऐसे में सांसद श्रीकांत शिंदे का तीन अन्य लोगों के साथ गर्भ ग्रह में प्रवेश करना बहस का विषय बन गया है। वीआईपी संस्कृति कि यह समस्या प्रदेश के पर्यटन स्थलों तक में बनी हुई, वीआईपी संस्कृति की यह समस्या ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग, मैहर के शारदा मंदिर, दतिया के पीतांबर शक्तिपीठ से लेकर प्रदेश के पर्यटन स्थलों तक में बनी हुई है। उद्देश्य यह था कि वहां दर्शनार्थी के चढ़ावे से राजकोष समृद्ध होगा। अब भगवान के दरबार में भी दो तरह की व्यवस्था हो गई है, एक आम जनता के लिए और एक अन्य लोगों के लिए, जो आर्थिक रूप से सक्षम हो। एक आम आदमी जो घंटे लाइन में लगने के बाद मंदिर में प्रवेश करता है, तो उसे बाहर से ही दर्शन करने के लिए बाध्य किया जाता है जैसे वह कोई अछूत हो। समर्थकों का तर्क, मंदिरोंको वित्तीय लाभ होता है।

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वीआईपी संस्कृति या दर्शन के समर्थकों का तर्क है कि इससे मंदिरों को व्यावहारिक और वित्तीय लाभ होता है। दर्शन शुल्क से प्राप्त ऋषि मंदिर  के रख-रखाव, जीर्णोद्धार और विस्तार में योगदान देती है। नासूर बन गई व्यवस्था, बड़े पर्व-त्योहारों पर मंदिर की व्यवस्था बिगड़ती है, अब वीआईपी दर्शन व्यवस्था नासूर सी बन गई है। गड़बड़ी के बाद मातहतों पर कार्यवाही भी नहीं होती है। इसके चलते हर बार बड़े पर्व- त्योहारों पर व्यवस्था बिगड़ती है। इसे ऐसा बनाना चाहिए, जिसे आम श्रद्धालुओं को परेशानी ना हो। वीआईपी धार्मिक पाप करता है ,जिसे भगवान माफ नहीं करेंगे मंदिर प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वीआईपी दर्शन के दौरान सार्वजनिक दर्शन किसी और असुविधा के बिना हो। न्यायाधीश ने कहा था कि अगर कोई वीआईपी आम श्रद्धालु के लिए असुविधा पैदा करता है तो वह वीआईपी धार्मिक पाप करता है, जिसे भगवान द्वारा माफ नहीं किया जाएगा ।