महाकुंभ में पहुंचे गीतानंद गिरी महाराज, शरीर पर 45 किलो रुद्राक्ष।

गीतानंद गिरी महाराज दिन में 12 घंटे तक में रुद्राक्ष को धारण करते हैं। सुबह 5:00 रुद्राक्ष धारण करने के बाद उसे शाम 5:00 उतार देते हैं। जब तक रूद्र शरीर पर रहता है तब तक गीतानंद गिरी महाराज बेहद हल्का भोजन ग्रहण करते हैं। और तपस्या करते रहते हैं। गीतानंद गिरी महाराज ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते हैं। गीत आनंद गिरि महाराज के पिता रेलवे में टीटी थे। उनके माता-पिता के कोई संतान नहीं हो रही थी। बाद में गुरु जी महाराज के आशीर्वाद से उन्हें संतान हुई।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ)TV 9 भारत समाचार प्रयागराज। 

महाकुंभ नगर गंगा की धरा पर 13 जनवरी से विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ होने जा रहा है। महाकुंभ के लिए की नामी बाबाओं का जमावड़ा हो गया है। महाकुंभ शुरू होने से पहले अखाड़े में प्रवेश शुरू हो गया है। साधु संत अपने-अपने अखाड़े में आने लगे हैं। महाकुंभ में नागा सन्यासी अपनी छावनियों में प्रवेश कर जप-तप और साधना में लीन हो गए हैं। अन्य संतों में से एक हैं, गीतानंद गिरी महाराज जी। गीतानंद महाराज की एक खास बात उन्हें श्रद्धालुओं में काफ़ी लोकप्रिय बना रही है। गीतानंद गिरी महाराज ने अपने शरीर पर सवा 2 लाख से ज़्यादा रुद्राक्ष धारण कर रखे हैं।

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साल 2019 में लिया गया था संकल्प…….

आवाहन अखाड़ा हरियाणा शाखा के सचिव गजानंद गिरी महाराज 2019 में प्रयागराज में हुए कुंभ के दौरान एक अनूठा संकल्प लिया था। यह संकल्प 12 साल तक प्रतिदिन सवा लाख रुद्राक्ष धारण करने को लेकर था। अभी गीतानंद गिरी महाराज के संकल्प को 6 महीने ही हुए हैं। रुद्राक्ष की संख्या आज सवा 2 लाख के ऊपर पहुंच चुकी है। इन रुद्राक्ष का वज़न 45 किलो ग्राम से अधिक है। अभी गीतानंद गिरी महाराज के संकल्प में 6 साल और बाकी है। ऐसे में रुद्राक्ष का वज़न और बढ़ेगा।

गीतानंद गिरी महाराज दिन में 12 घंटे तक इन रुद्राक्ष को धारण करते हैं। सुबह 5:00 बजे रुद्राक्ष धारण करने के बाद उसे शाम 5:00 बजे उतार देते हैं। जब तक रुद्राक्ष शरीर पर रहता है, तब तक गीत आनंद गिरि महाराज बेहद हल्का भोजन ग्रहण करते हैं। और तपस्या करते रहते हैं।

गीतानंद गिरी महाराज ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते हैं। गीतानंद गिरी महाराज के पिता रेलवे में टीटी थे। उनके माता-पिता की कोई संतान नहीं हो रही थी। बाद में गुरुजी महाराज के आशीर्वाद से उन्हें संतान प्राप्त हुई थी। इसके बाद उन्होंने अपनी संतान को गुरुजी को समर्पित कर दिया। पंजाब में गीतानंद गिरी महाराज के माता-पिता ने उन्हें गुरु जी को सौंप दिया था। तब से वह गुरु सेवा में हैं और संन्यासी जीवन बिता रहे हैं‌। गीतानंद गिरी महाराज संस्कृत माध्यम से हाई स्कूल तक पढ़ाई किए हैं।

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