कोटा में आत्महत्या करने वाली छात्रा कृति ने अपने सुसाइड नोट में लिखा, भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय को पत्र।
कृति ने लिखा है कि वह कोटा में कई छात्रों को डिप्रेशन वाले स्ट्रेस से बाहर निकाल कर सुसाइड करने से रोकने में सफल हुई लेकिन खुद को नहीं रोक सकी। बहुत लोगों को विश्वास नहीं होगा कि मेरे जैसे लड़की जिसके 90 + मार्क्स हो वह सुसाइड भी कर सकती है। जानकर आपको काफी आश्चर्य होगा। अपनी मां के लिए उसने लिखा- आपने मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा उठाया और मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर करती रही।
मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ)TV 9 भारत समाचार कोटा (राजस्थान )।
कोटा में आत्महत्या करने वाले छात्रा कृति ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि – “मैं भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय से कहना चाहती हूं कि अगर वह चाहते हैं कि कोई बच्चा ना मरे, तो जितनी जल्दी हो सकें इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें।”
यह कोचिंग छात्रों को खोखला कर देते हैं। पढ़ने का इतना दबाव होता है कि बच्चे बोझ तले दब जाते हैं।
कृति ने लिखा है कि वह कोटा में कई छात्रों को डिप्रेशन और स्ट्रेस से बाहर निकाल कर सुसाइड करने से रोकने में सफल हुई, लेकिन खुद को रोक नहीं पाई।
बहुत लोगों को विश्वास नहीं होंगा कि मेरे जैसी लड़की जिसके 90 + मार्क्स हो वह सुसाइड भी कर सकती है।
लेकिन मैं आप लोगों को समझा नहीं सकती कि मेरे दिमाग और दिल में कितनी नफ़रत भरी है।
अपनी मां के लिए उसने लिखा है कि – “आपनेेेेेेेे मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा और मुझेेेे विज्ञान पसंद करनेेेे के लिए मजबूर करती रहीं।” मैं भी विज्ञान पढ़ती रही, ताकि आपको खुश रख सकूं।
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मैं क्वांटम फिजिक्स और एस्ट्रोफिजिक्स जैसे विषयों को पसंद करने लगी और उसमें ही बीएससी करना चाहती थी। लेकिन मैं आपको बता दूं कि मुझे आज भी अंग्रेजी साहित्य और इतिहास बहुत अच्छा लगता हैं, क्योंकि यह मुझे मेरे अंधकार के वक्त में मुझे बाहर निकालते हैं।
कृति अपनी मां को चेतावनी देती है कि – इस तरह की चालाकी और मजबूर करने वाली हरकत 11वीं क्लास में पढ़ने वाली छोटी बहन से मत करना। वो जो बनना चाहती है, जो वह पढ़ना चाहती है, उसे वह करने देना, क्योंकि वह उस काम में सबसे अच्छा कर सकती है। जिससे वह प्यार करती है।
इसको पढ़ कर मन विचलित हो जाता है। इस होड़ में हम अपने बच्चों के सपनों को छीन रहे हैं। आज हम लोग अपने परिवारों से प्रतिस्पर्धा करने लगे हैं। फलां का बेटा-बेटी डॉक्टर बन गया, हमें भी डॉक्टर बनाना है।
आज हमारे स्कूल बच्चों को पारिवारिक रिश्तों का महत्व नहीं सीखा पा रहें, उन्हें असफलताओं या समस्याओं से लड़ना नहीं सीखा पा रहे हैं।
उनके जहन में सिर्फ एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा के भाव भरे जा रहे हैं। जो जहर बनाकर उनकी ज़िंदगियां लील रहा है। जो कमजोर है वह आत्महत्या कर रहा हैं, जो और थोड़ा मजबूत है, वह नशे की ओर बढ़ रहा है।
जब हमारे बच्चे असफलताओं से टूट जाते हैं, तो उन्हें यह पता ही नहीं है कि इसे कैसे निपटा जाएं। उनका कोमल हृदय इस नाकामी से टूट जाता है कि इसी वज़ह से आत्महत्या बढ़ रही है। सभी विद्यार्थियों को यह सलाह देते हैं कि वह अपने जीवन में ऐसा कोई भी कदम ना उठाएं जिससे उन्हें अपनी समस्याओं से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएं, लेकिन जैसी भी परिस्थिति हो वह किसी ऐसे एक इंसान से अपनी समस्याओं और मुश्किलों को बता सकें , जो उनकी समस्याओं का पूर्ण रूप से समाधान कर सकें । वह उनके जीवन में सही रास्ता दिखा सकें, जिससे वह अपने जीवन में हर परिस्थिति से लड़ना सीख सकें।
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