कार्यालय जिला लोक संपर्क अधिकारी, फाजिल्का, केवीके टीम ने फार्म का दौरा किया।
यादविंदर सिंह ने अपने खेत में बिना पराली जलाएं मल्चिंग विधि से गेहूं की बुआई की है। इस विधि के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया है कि धान की कटाई के बाद सबसे पहले रीपर से पुआल को बिछाते हैं।
मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ)TV 9 भारत समाचार (फाजिल्का)। फाजिल्का जिले के किसान पर्यावरण की रक्षा करते हुए अलग-अलग तकनीक अपना कर गेहूं की बिछाई कर रहे हैं और ऐसा करते हुए वह पराली नहीं जला रहे हैं। पराली को खेत में मिलकर गेहूं की बिजाई कर रहे हैं। ऐसे यह किस है गांव ढाणी चिराग के यादविंदर सिंह जो अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा का दीपक जला रहे हैं।
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यादविंदर सिंह ने अपने खेत में बिना परली जलाएं मल्चिंग विधि से गेहूं की बुआई की है। इस विधि के बारे में जानकारी देते हुए बताया है कि धान की कटाई के बाद सबसे पहले रीपर से पुआल को बिछाते हैं और फिर गेहूं और डीएपी छिड़कने के बाद उसे खेत में रीपर को निचा कर चल देते हैं। इस तरह बीज और खाद के ऊपर भूसे की एक परत बिछा दी गई है और उसके बाद उन्होंने खेत को पानी लगाया।
उनका कहना है कि इस विधि में बुआई से पहले खेत में ज्यादा नमी नहीं होनी चाहिए। पानी बहुत हल्का लगाना चाहिए।
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जिससे बीज का अंकुरण बहुत अच्छे से होता है। इसी प्रकार, उन्होंने कहा है कि पुआल से ढका रहता है और बुआई के समय जमीन की जुताई नहीं की जाती है। इसीलिए इस खेत में खरपतवार कम होते हैं। इस काम के लिए किसी महंगी मशीन या बड़े ट्रैक्टर की जरूरत नहीं है। रीपर एक छोटा उपकरण हैं और आम गांवों में उपलब्ध है।
कृषि विज्ञान केंद्र फाजिल्का की टीम विशेष रूप से यादवेंद्र सिंह के फार्म पर उनका हौसला बढ़ाने के लिए पहुंची। इसमें कृषि मशीनरी विशेषज्ञ डॉक्टर किशन कुमार पटेल, मृदा विशेषज्ञ डॉक्टर प्रकाश चंद, गृह विज्ञान विशेषज्ञ डॉक्टर रुपिंदर कौर शामिल थी। जिन्होंने यादविंदर सिंह को बधाई दी और अन्य किसानों को भी इस तकनीक को अपनाने के लिए कहा। मौके पर उपस्थित गांव के सरपंच सुखचैन सिंह व अन्य किसान भी कुछ क्षेत्र में इस तकनीक से गेहूं की बुआई करने पर सहमत हुए। प्रगतिशील किसान करनैल सिंह अलियाना ने भी इस विधि की बातें उन किसानों से साझा की है जो स्वयं हर साल इस विधि से गेहूं की कुछ बुआई करते हैं।