बेटा-बेटी की गवाही पर पिता को 10 साल कैद, प्रताड़ना से तंग पत्नी ने दे दी थी जान, जज ने की अहम टिप्पणी।

जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता दिगंबर सिंह पटेल ने बताया है कि मृतक वंदना के बेटे आयुष्मान और बेटी रितिक ने अदालत में अपने पिता विकास के ख़िलाफ़ गवाही दी है। इसका के आधार पर अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक प्रथम की अदालत में वंदना के आत्महत्या के मामले में उसके पति विकास उपाध्याय को दोषी मानते हुए 10 वर्ष की सजा सुनाते हुए 50,000 का अर्थदंड लगाया है।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ)TV 9 भारत समाचार बरेली (उत्तर प्रदेश )।

अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक प्रथम रवि कुमार दिवाकर ने एक और फैसला देवी देवताओं का उदाहरण देते हुए सुनाया है। मारपीट कर उत्पीड़न से परेशान होकर आत्महत्या करने के मामले में बेटे और बेटी की गवाही पर पिता को 10 साल की सज़ा के साथ 50 हजार रुपए का अर्थ दंड भी लगाया है।

जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता दिगंबर सिंह पटेल ने बताया है कि बारादरी थाना क्षेत्र के संजय नगर में रहने वाली वंदना ने 29 व 30 नवंबर 2023 के रात को आत्महत्या कर ली थी। वंदना की मां ने उसके पति और परिजनों के ख़िलाफ़ दहेज में उत्पीड़न और मार-पीट का मुकदमा दर्ज कराया था। आए दिन छोटी-छोटी बातों पर पत्नी वंदना के साथ शराब पीकर मार-पीट करता था। पति के उत्पीड़न और तानों से परेशान होकर बंदना ने आत्महत्या कर ली थी। पुलिस ने मुकदमा दर्ज करते हुए आरोपी पति को जेल भेज दिया और मामला तब से कोर्ट में विचाराधीन था।

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महिला के दर्द को बयां नहीं किया जा सकता है……

जज ने अपने फैसले में लिखा है कि भारतवर्ष में महिला को देवी का दर्जा तो देते हैं लेकिन महिला होने का अधिकार नहीं देते हैं‌। यदि भारतीय पुरुष वास्तव में महिला को देवी का दर्जा देते तो, क्या शराब पीकर पत्नी को जानवरों की तरह मारते-पीटते और गाली गलौज करते। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि वंदना एम ए इंग्लिश लिट्रेचर तक पढ़ी थी। वंदना बहुत कष्ट में रही होंगी, इसलिए एक बेटा और एक बेटी होने के बाबू जो उसने आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाया। वंदना एक शिक्षित महिला थी। इसलिए वह भली-भांति जानती थी कि दुनिया में विदा होने के बाद दोनों बच्चों का भविष्य क्या होगा? दोनों बच्चे जीवन भर बिना मां के पीड़ा में रहेंगे। न्यायालय के द्वारा शायद मृतक वंदना के बच्चों की पीड़ा को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने अपने फैसले में आगे कहा है कि इस निर्णय के माध्यम से विशेष कर युवाओं और शादीशुदा महिलाओं से आग्रह करूंगा कि वह जीवन में चाहे कैसे भी परिस्थितियां आएं, वह उसका डटकर मुकाबला करें। किसी भी हालत में भगवान द्वारा दिए गए अनमोल जीवन को कदापि समाप्त न करें। क्योंकि जीवन भगवान देता है और उसे किसी भी व्यक्ति को स्वयं से लेने का अधिकार नहीं है। जीवन एक तपस्या है छोटी-छोटी परेशानियों से डरने की जरूरत नहीं है। क्योंकि रात कितनी भी काली क्यों ना हो, उसके बाद सुबह होती जरूर हैं।

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