तीन गुना दाम पर बिक रही प्रतिबंधित नारकोटिक्स दवा, बदलता रहता हैं कोड वर्ड
करोड़ों रूपये के इस धंधे का पूरा साम्राज्य बिहार तक फैला है।
मुकेश साहनी,ज़िला क्राइम रिपोर्टर :महराजगंज। सीमा पर प्रतिबंधित नारकोटिक्स की दवाएं तीन गुने दाम में धड़ल्ले से बेची जा रही हैं। साथ ही बिहार भी भेजी जा रही हैं। एक साल में 250 नमूने जांच के लिए भेजे गए, लेकिन हैरानी की बात यह है कि मजह एक प्रतिशत नमूने ही फेल हुए। विभाग की नजर में जिले में कहीं भी नारकोटिक्स की दवा सीधे नहीं मिलती है। इसके लिए डॉक्टर की पर्ची अनिवार्य है। विभाग की सख्ती का फायदा उठाकर धंधेबाज खूब मुनाफा कूट रहे हैं।
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सूत्र बता रहे हैं कि दवा की दुकान से सामान्य आदमी को ये दवाएं नहीं मिलती हैं। इसके लिए धंधेबाजों ने कोर्ड वर्ड बनाकर रखा है। ये कोर्ड वर्ड हमेशा बदलता रहता है। शहर में तो विभागीय सख्ती का असर दिखता है, लेकिन सीमावर्ती इलाकों में सख्ती बेअसर हो जाता है। इस पूरे खेले में बड़ा सिंडिकेट शामिल है। यही वजह है कि कभी कार्रवाई करने के बाद अधिकारी खामोश हो जाते हैं।
दुकानों में ये प्रतिबंधित दवाएं नहीं रखी जाती हैं, क्योंकि पकड़े जाने पर कार्रवाई का डर रहता है। दुकानदार रेट से दो गुना व तीन गुना दाम पर ये दवाएं बेंचकर खूब मुनाफा कूटते हैं। करोड़ों के इस धंधे का पूरा साम्राज्य बिहार तक फैला है। बार्डर से आसानी से भारतीय सीमा में नशा करने वाले युवक चले जाते हैं और गोली का सेवन कर चले जाते हैं। इसमें उनको पकड़े जाने का खतरा भी कम रहता है। सीमावर्ती क्षेत्र ठूठीबारी, रेगहियां, झुलनीपुर, सिसवा, बरगदवा, लक्ष्मीपुर समेत अन्य क्षेत्रों में धड़ल्ले से काम किया जा रहा है।
केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट फेडरेशन के जिलाध्यक्ष अशोक चौरसिया कहते हैं कि लाइसेंस दुकानदार गलत काम नहीं करते हैं। यह सब बगैर लाइसेंस वाले ही करते हैं, इससे वास्तविक कारोबारी की छवि खराब होती है। बैठक कर संगठन के माध्यम से कारोबारियों को जानकारी दी जाती है। ज्यादा खिलापढ़ी करने के कारण कोई कारोबारी नारकोटिक्स की दवा नहीं रखना चाहता है।
केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट फेडरेशन के प्रदेश महासचिव सुरेश गुप्ता ने बताया कि नार्कोटिक्स ड्रग्स एवं साइकोट्रोपिक सब्सटांस की दवाई जिसको नशे में भी इस्तेमाल किया जाता है, इसके कालाबाजारी व अवैध कारोबारी की जांच होनी चाहिए। खासकर कोडीन कफ सिरप, जैसे की फेंसडिल कफ सिरप जिसकी कालाबाजारी की गई और उसमे अवैध दवा कारोबारी के साथ खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से अरबों रुपये की कालाबाजारी दूसरे प्रदेशों मे की गई, उसकी सीबीआई से जांच की जानी चाहिए।
विभाग द्वारा खानापूर्ति के लिए जांच की गई और कुछ दिनों के लिए चुनिंदा कारोबारी का लाइसेंस निलंबित किया गया और बाद में लेनदेन करके निलंबन समाप्त कर दिया गया। यह यक्ष प्रश्न है कि किसी भी अवैध कारोबारी और भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ कोई भी पुलिस कार्रवाई नहीं की गई और उन्हें क्लीन चिट मिल गई। ऐसे में यह आवश्यक है कि हर हाल में सीबीआई या ईडी से जांच की जानी चाहिए, जिससे पूरे मामले की सच्चाई सामने आ सके।
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