बदायूं की जामा मस्जिद या नीलकंठ महादेव मंदिर, अब अगली सुनवाई 10 तारीख को होगी।

जामा मस्जिद का मुक़दमा लड़ रहे एडवोकेट असरार अहमद सिद्दीकी बताते हैं कि यह 850 साल पुरानी जामा मस्जिद है यहां कभी मंदिर नहीं था, मंदिर का दावा पेश करने का हिंदू महासभा को कोई अधिकार नहीं है, उनके दावे के हिसाब से मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं है। जो चीज़ अस्तित्व में नहीं है, उसकी तरफ से कोई दावा नहीं हो सकता है।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ )TV 9 भारत समाचार ….उत्तर प्रदेश……

जामा मस्जिद को नीलकंठ महादेव जी मंदिर का दावा करने के मामले में आज सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में सुनवाई हुई, मुस्लिम पक्ष की सुनवाई आज पूरी नहीं हो पाई मामले में अगले शनिवार 10 दिसंबर को सुबह 10:30 बजे से होगी। 8 अगस्त 2022 से इस मुक़दमे में सुनवाई चल रही है। हिंदू महासभा ने अध्यक्ष मुकेश पटेल की अदालत में वाद दायर करते हुए कहा है कि जहां पर जामा मस्जिद है, वहां पर पूर्व में नीलकंठ महादेव जी का मंदिर था। इसके सबूत है, आज भी मूर्तियां हैं, पुराने खंभे हैं, नीचे सुरंग है, पूर्व में यहां पास में तालब हुआ करता था।

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जब मुस्लिम आक्रांता आए तो मंदिर तोड़ा गया वही मान्यता है, इस मंदिर के शिवलिंग को थोड़ी दूर एक दूसरे मंदिर में लाकर स्थापित कर दिया गया। जिसकी आज भी मंदिर में पूजा होती हैं। मुकेश पटेल ने दावा किया है कि कुतुबुद्दीन ऐबक के समय मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई। सन् में 1875 से 1878 तक के गजट में इसके प्रमाण मौजूद हैं। जिसमें लिखा है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं।

इससे पूर्व सुनवाई में सरकार की तरफ़ से पक्ष रखा जा चुका हैं। पुरातत्व विभाग ने इसे राष्ट्रीय धरोहर बताया है और साथ ही कहा है कि राष्ट्रीय धरोहर से 200 मीटर तक सरकार की जगह हैं। कोर्ट इंतजामिया कमेटी, यूपी सेंटर सुन्नी वक्फ बोर्ड, भारत सरकार, मुख्य सचिव यूपी, पुरातत्व विभाग और DM बदायूं को  नोटिस जारी कर जवाब मांगा जा चुका हैं। इसके बाद वक्फ बोर्ड और इंतजामिया कमेटी की तरफ़ से बहस की जा रही हैं। इसमें अब सुनवाई होनी है, इसी बीच असदुद्दीन ओवैसी ने शनिवार को ट्वीट कर इस मामले को भी गरमा दिया।

जामा मस्जिद का मुकदमा लड़ रहे एडवोकेट असरार अहमद सिद्दीकी बताते हैं कि यह 850 साल पुरानी जमा मस्जिद है, यहां कभी मंदिर नहीं था। मंदिर का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है, उनके दावे के हिसाब से मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं हैं।

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जो चीज़ अस्तित्व में नहीं है, उसकी तरफ से कोई दावा नहीं हो सकता हैं। अदालत में दावे को ख़ारिज़ करने पर बहस की जा रही हैं। बताया गया है कि पुराना रिकॉर्ड भी उठा कर देख लिया जाएं तो भी सरकार रिकॉर्ड में यहां जामा मस्ज़िद दर्ज़ हैं।

जामा मस्ज़िद शम्सी के आस-पास के मुस्लिम समुदाय के लोग मानते हैं कि गुलाम वंश के शासन शमसुद्दीन अल्तमश ने 1223 ईस्वी में अपनी बेटी रज़िया सुल्तान की पैदाइश पर इस मस्ज़िद का निर्माण कराया था। रज़िया सुल्तान पहली मुस्लिम शासक बनीं, शमसुद्दीन सूफ़ी विचारधारा का प्रबल प्रचारक था। वह जब बदायूं आया तो यहां कोई मस्ज़िद नहीं थीं, इसी वज़ह से उन्होंने इस मस्ज़िद का निर्माण कराया था।