“बच्चों की गवाही भी होंगी मान्य” सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला, गवाही के लिए कोई न्यूनतम उम्र निर्धारित नहीं।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने बच्ची की गवाही को ख़ारिज करते हुए आरोपी को बरी कर दिया था। बच्ची ने अपने पिता को उसकी मां की हत्या करते हुए देखा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एविडेंस एक्ट में गाव के लिए कोई न्यूनतम उम्र निर्धारित नहीं है। अदालत ने कहा कि इस कारण किसी बच्चे को गवाह के तौर पर ख़ारिज नहीं किया जा सकता, हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि बाल गवाह के साक्ष्य का आकलन करते समय कोर्ट को एकमात्र सावधानी बरतनी चाहिए।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ ) TV 9 भारत समाचार नई दिल्ली। 

देश की शीर्ष अदालत ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि बच्चों की गवाही को भी इस तरह से माना जाएं, जैसे दूसरों की गवाही को माना जाता हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि गवाही के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती हैं।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल की बच्ची की गवाही के आधार पर उसके पिता कामा की हत्या का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सज़ा सुनाई। यह आदेश जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने दिया।

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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने किया था बरी……………

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने बच्ची की गवाही को को ख़ारिज करते हुए आरोपी को बरी कर दिया था। बच्ची ने अपने पिता को उसकी मां की हत्या करते हुए देखा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एविडेंस एक्ट में गवाह के लिए कोई न्यूनतम उम्र निर्धारित नहीं है।

अदालत ने कहा कि इस कारण किसी बच्चे को गवाह के तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि बाल गवाह के साक्ष्य का आकलन करते समय कोर्ट को एकमात्र सावधानी यह बरतनी चाहिए कि ऐसा गवाह विश्वसनीय होना चाहिए, क्योंकि बच्चे के बहकावे में आने की आशंका होती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों को गाव के तौर पर मानते समय अदालत को यह जांच कर लेनी चाहिए कि वह अपना बयान किसी के बहकावे में आकर तो नहीं दे रहा है। इसका मतलब यह नहीं है कि किसी बच्चे के साक्ष्य को थोड़ी-सी भी विसंगति होने पर सिरे से ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए। बल्कि यह आवश्यक है कि इसका मूल्यांकन बहुत सावधानी से किया जाएं।

अदालत ने कहा कि किसी बच्चे के गवाह की गवाही पर भरोसा करने से पहले इसकी पुष्टि की आवश्यकता वाला कोई नियम नहीं है, और पुष्टि का आग्रह केवल सावधानी और विवेक का एक उपाय है। जिसे अदालतें मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में आवश्यक समझे जाने पर अपना सकती है।

मध्य प्रदेश के सिंघराई गांव में बलवीर नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के गला घोट कर हत्या कर दी थी। घटना के वक्त उसके साथ साल की बेटी घर पर ही थी। उसने अपने पिता को यह सब करते हुए देखा और फिर गवाही दी थी।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने बच्चों की गवाही को उम्र के आधार पर ख़ारिज करते हुए आरोपी को बरी कर दिया था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने उसे उम्र कैद की सज़ा सुनाई हैं।

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