…जब अंग्रेज अफसर ने लिख दिया ‘ही इज नॉट फिट फॉर सर्विस’

हैदराबाद के निजाम के खिलाफ हुए आंदोलन में हिस्सा लिए थे सूबेदार केदारनाथ श्रीवास्तव

सुलतानपुर। आजादी के लिए दीवानों में ऐसी दीवानगी रही कि घर परिवार की परवाह किए बगैर वे खुशी खुशी जेलों में जाने को तैयार रहते थे। देश को फिरिंगियों से आजादी दिलाना इन दीवानों की जिंदगी का मकसद था। ये दीवाने जिए तो देश के लिए मरे तो भी देश के लिए। ऐसे ही स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे केदारनाथ श्रीवास्तव। दूबेपुर ब्लाक के पल्हीपुर लाला का पुरवा निवासी केदारनाथ श्रीवास्तव ने 1938 में तिरंगा उठाया और जेल चले गए। जेल से वापस आने पर उन्हें समाज का तिरस्कार झेलना पड़ा।

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आपको बताते चलें कि वर्ष 1941 में जब केदारनाथ श्रीवास्तव फौज में भर्ती हुए तो गांव के मुखिया ने यह लिखकर दे दिया कि वे नौकरी लायक नहीं हैं। संबंधित आईपीएस अधिकारी ने मुखिया की रिपोर्ट पर लिख दिया कि ‘ही इज नॉट फिट फॉर सर्विस’। उन्होंने इन आरोपों का जवाब दिया। इसके साथ ही देश की रक्षा के लिए सेना में नौकरी भी की और सूबेदार होकर रिटायर्ड हुए।

उनके पुत्र वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पत्रकार जीतेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि मेरी मां सावित्री देवी को स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही पिता की नौकरी वाली पेंशन भी मिलती थी। वर्ष 1938-39 में जब अंग्रेजों का जुल्म चरम पर था। ब्रिटिश शासकों ने निजाम से सांठगांठ कर हैदराबाद स्टेट में हिंदुओं की पूजा अर्चना पर रोक लगा दी थी इसके विरोध में आर्य समाज ने आंदोलन छेड़ा तो जिले के कई युवा भी उसमें शामिल हुए।

दुबेपुर ब्लॉक के पल्हीपुर लाला का पुरवा निवासी केदारनाथ श्रीवास्तव भी देश के कोने-कोने से आर्य समाज के आने वाले कार्यकर्ताओं की जमात में शामिल होकर हैदराबाद पहुँचे। निजाम के स्टेट में पहुंचते ही रोटेगांव रेलवे स्टेशन पर युवाओं को पकड़ लिया गया। वहां से निजाम की पुलिस ने सबको बैजापुर की तहसील कोर्ट में पेश किया। उन पर शांतिभंग के अंदेशा समेत देशद्रोह की धाराएं लगाई गई।

काजी ने अलग-अलग जुर्म के लिए ढाई साल की सजा सुनाकर सबको औरंगाबाद जेल भेज दिया। हैदराबाद के निजाम के खिलाफ हुए इस आंदोलन की जंग-ए-आजादी में विशेष अहमियत है। कालांतर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के गांव पलहीपुर जाने वाली सड़क का नामकरण उनकी याद में बनाई गई एवं उनके नाम एक गेट एमएलसी डॉ ओम प्रकाश त्रिपाठी ने बनवाया। पलहीपुर ग्राम पंचायत भवन भी उनकी स्मृति में समर्पित है।
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