तीन घरों से एक साथ उठी पांच मासूमों की अर्थियां तो फफक उठा गांव
घर से अर्थी उठते ही हर तरफ सुनाई पड़ी चीख पुकार, पछाड़े खाकर गिर रहे थे मां बाप
रायबरेली। तीन घरों से रविवार को दोपहर में एक साथ जब पांच मासूमों की अर्थियां उठी तो पूरा गांव फफक उठा। घर से अर्थी उठते ही हर तरफ चीख पुकार सुनाई पड़ी। मां बाप पछाड़े खाकर गिर रहे थे। नम आंखों से गांव के लोगों ने मासूमों को विदा किया। गौरतलब हो कि तालाबी नाले में डूबने से जहां संजू की दोनो संताने बेटा और बेटी काल के गाल में समा गए। वहीं विक्रम ने अपनी दो बेटियां खोई तो जीतू की एक बेटी इस हादसे का शिकार हो गई। नाले के तालाबी रुप की जद में आए पांच मासूम की मौत ने बासी रिहायक के मंगता डेरा गांव को झकझोर कर रख दिया। घटना से ग्रामीण स्तब्ध है।
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गदागंज थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत बासी रिहायक का मंगता डेरा गांव जहां लगभग 80-90 घरों की बस्ती है। इस छोटे से गांव में शनिवार को घटित बड़ी घटना में आठ वर्षीय रीतू, 10 वर्षीय सोनम, 12 वर्षीय वैशाली, 9 वर्षीय रूपाली व आठ वर्षीय अमित तथा संदिका पुत्री मान सिंह, खुशी पुत्री मोनू और विशेष पुत्र दिनेश शनिवार को करीब 11 बजे गांव के पास स्थित एक नाले में जो मिट्टी काटने से छोटे तालाब का रूप ले चुका था उसमे एक साथ नहाने गए हुए थे। नहाते समय सभी बच्चे तालाब के गहरे पानी में चले गए। जिसके कारण बच्चे डूबने लगे। बच्चों की चीख-पुकार सुनकर बच्ची सोनिका जो अपने बकरे को चराने गई थी। उसने रस्सी डाल कर तीनों को निकाला और बाकी बच्चो के पानी डूबने की सूचना गांव वालो को दी। लोगों ने कूदकर बाकी बच्चों को बाहर निकाला लेकिन तब तक रितु, सोनम, बैशाली, रूपाली और अमित उर्फ विक्की की मौत हो चुकी थी। जबकि संदिका ,खुशी और विशेष की सांसे चल रही थी। तीनों को दीनशाह गौरा सीएचसी अधीक्षक ज्ञान सिंह सिसौदिया की टीम ने सभी का परीक्षण कर उपचार किया। घटी इस घटना से पूरे गांव में शोक की लहर फैल गई है।
शोकाकुल परिवार से मिले जनप्रतिनिधि
हृदय विदारक घटना की जानकारी पाकर ऊंचाहार विधायक डा मनोज कुमार पांडेय के प्रतिनिधि पंकज सिंह, सपा ब्लाक अध्यक्ष अशोक मिश्र के साथ मृतक बच्चों के घर पहुंच कर शोकाकुल परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए मृत मासूमों को श्रद्धा सुमन अर्पित किया और परिवार को ढांढस बंधाया। साथ ही सहायता राशि प्रदान की। गौरतलब हो कि विधायक मनोज कुमार पांडे राज्य से बाहर उनके निर्देश पर उनके प्रतिनिधि गांव पहुंचे।उनके साथ सहकारी बैंक के चेयरमैन विवेक विक्रम सिंह ने भी घटनास्थल का मुआयना किया और इस घटना को अत्यंत दुखद बताया। तीन बच्चो की जान बचाने वाली सोनिका को 2100 रुपए का आर्थिक प्रोत्साहन भी दिया और पीड़ित परिवार अन्य मदद का भरोसा भी दिलाया। इसके बाद क्षेत्रीय ब्लाक प्रमुख सरिता मौर्य ने भी अपने कार्यकर्ताओं के साथ गांव पहुंचकर मृतक के परिजनों को ढाढ़स बँधाते हुए मदद दिलाने का आश्वासन दिया।
एक साथ दफन हुए पांच जिगर के टुकड़े
रविवार का दिन मंगता डेरा गांव वालो के लिए बहुत ही भयावह रहा। क्योंकि इसी दिन तीन परिवारों के पांच मासूम बच्चों का शव एक साथ एक ही कब्र में अलग-अलग जगह बना कर दफना दिया गया।इस दुःख की घड़ी में पूरा गांव इकट्ठा हो गया।सभी की भीगी पलकें उनके गम को बयां कर रही थी। जो बच्चे हर दिन एक साथ खेलते थे उनको मौत भी जुदा न कर सकी और वह एक साथ इस दुनिया से चले गए। यहां तक कि उनके शव भी एक साथ दफना दिए गए। जिसने भी इस घटना के बारे में सुना उसका कलेजा मुंह को आ गया। दिल दहला देने वाले इस हादसे ने परिवार वालों को तोड़ के रख दिया। किसी का चिराग उजड़ा तो किसी के घर की लक्ष्मी रुठ गई। यूं एक साथ उनको अंतिम विदाई देते हुए हर आंख छलक आई। प्रशासन के लिए भले ही उस एक हादसा हो लेकिन यहां तो हर किसी के लिए यह वो मंजर था जो वह कभी नही भूल सकते। ये वह सबक था जो अब कोई भुलाया नही जा सकता। जब गांव के लोगों का बुरा हाल था तो उन परिवारों पर तो गमों का पहाड़ ही टूट पड़ा था। आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे। फिर भी अपने लाड़लों को अंतिम विदाई तो देनी ही थी। सभी ने नम आंखों से अपने कलेजे के टुकड़ों को विदा किया।उनकी इस विदाई में पूरे गांव को रुला दिया।
बुझ गए घर के चिराग तो ठंढे पड़ गए चूल्हे
जिन चिरागों के सहारे घर की देहरी रोशन हो रही थी अगर वही बुझ जाए तो फिर घर के चूल्हे कैसे जल सकते हैं। बासी रिहायक के मंगता डेरा में घटी दिल दहला देने वाली घटना से तीन परिवारों की दुनिया ही उजाड़ दी। हादसे के बाद किसी के मुंह से एक भी निवाला अंदर नही जा सका। परिवार हो या मुहल्ला सब अपने बच्चो के गम उनके पेट की आग भी बुझ सी गई। कोई आता तो मुहल्ले के बच्चो को कुछ खिला देता,उसी में रविवार का दिन निकल गया। जिन बच्चो को लेकर तरह तरह के सपने बुने थे उनको हमेशा के लिए विदा कर देने के बाद जैसे लोगों के कलेजे फट गए। गांव में बस दिल दहला देने वाली चीखों और नम आंखों के अलावा कुछ भी नही दिख रहा था। कुछ गांव वाले तो दिल पर पत्थर रख के एक दूसरे को समझाते पर जैसे ही मौका मिलता उनकी आंखे भी छलक पड़ती। ऐसे लगता था सभी की भूख प्यास इस हादसे ने ले ली थी।
गुड्डी की आखों से सदा के लिए ओझल हो गई दोनो बेटियां
अपनी दोनो बेटी वैशाली और रूपाली की कथित तालाब मे डूबने की खबर ने मां गुड्डी हो अंदर तक हिला गया। वह इस बात का जैसे यकीन ही नहीं कर पा रही थी की उनकी बेटियां अब नही रहीं। उनकी मौत हो गई है। पिता विक्रम भी बदहवास सा था। आखिर क्या कसूर हो गया जो उससे उसकी बेटियां दूर हो गई।उधर बहन मालिनी भाई कौशल और का भी रो-रोकर बुरा हाल था।
बिटिया रीतू कहां चली गईव देखव हम आ गएन है
कानपुर से अपने पति जीतू के साथ लौटी रीतू की मां किरन आते ही दहाड़ मार के रो पड़ी। उसकी आंखो में आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे। बस वो थी बोले जा रही थी बिटिया तुम कहा चली गई हम आ गएन है। अब तो आ जाओ। एक मां के लिए अपने बच्चों से बढ़ के कुछ नही हो सकता। रुदन ऐसा की देख कर कलेजा फट जाए जो भी देखता उसकी आंखो से आसुओं की धार टपक पड़ती। यह नजारा ऐसा था की किसी का भी दिल दहल जाए। जिस घर के चिराग बुझ गए हों वहां की दशा क्या हो सकती है। कानपुर में मजदूरी कर के अपना व अपने परिवार का पेट पाल रहे जीतू और उसकी पत्नी किरन का रो रो के बुरा हाल था।
बरसती नाले में डूब गई बूढ़ी आंखों की उम्मीद
जिनकी दुनिया ही उसके अपने नाती व नातिन हों और वो यू उनसे बिछड़ जाए तो भला उसकी और क्या उम्मीद हो सकती है। यही हाल बच्चो की दादी कुंती का था जो भीख मांग अपना व अपने दोनो जिगर के टुकड़ों का गुजारा कर रही थी। करीब 70 वर्ष की उम्र में भी यही दोनो उसकी आखिरी उम्मीद थे। क्योंकि बहू मंजू तो पहले ही पति और बच्चों को छोड़ कर चली गई थी। वह काला शनिवार जब उनके नाती विक्की उर्फ अमित और नातिन सोनम भी तालाब का रुप ले चुके नाले में नहाने के लिए चल दिए उन्हें क्या पता था की अब वह वापस नही लौटेंगे। दादी कुंती इन्ही बच्चो के सहारे जीवन बिता रही थीं। इन बच्चो की मौत पर पूरा गांव यह कह रहा था अगर इस बुढ़िया को पता चला तो वह यह सदमा बर्दास्त नही कर पाएगी। इसीलिए जब वह शनिवार की शाम को करीब छः बजे घर पहुंची तो गांव वालो ने यही बताया की बीमार हो गए हैं उसके बच्चे इलाज करा कर आयेंगे। फिर भी इतना सुनते ही वह परेशान हो उठी और पानी पीने से इंकार कर दिया किसी तरह लोग उसको पानी पिलाएं लेकिन उन बूढ़ी आंखों में अपने नाती नातिन को देखने को बेहाल थी। किसी अनिष्ट की शंका ने उसको परेशान कर दिया था। दादी से ज्यादा देर तक हकीकत छुपी न रह सकी और जैसे ही उसे हकीकत का पता चला मानो उसकी दुनिया ही उजड़ गई। वह तड़प उठी और उसकी चीत्कार ऐसी की पत्थर का दिल पिघल जाए। बेटा जो नशे का आदी है बहू छोड़ के जा ही चुकी थी। उसकी तो यह बच्चे ही दुनिया थे जिनके लिए वह जी रही थी। उसे देख कर यही लग रहा था जैसे उसके जीने का मकसद ही भगवान ने छीन लिया था। उसकी सुनी आंखे अपने लाडलो को खोज रही थी।
लाडलों की मौत से भी नही पसीजा मंजू का मन, पति से रिश्ता तोड़ चुकी है मंजू
कहते हैं बच्चो के लिए मां जैसा प्यार कोई नही करता लेकिन इस कलयुग में ये सब मिथक सा बन के रह गया है। अपने पति से नाराज हो कर उसे छोड़ किसी अन्य साथी की तलाश पूरी होने के बाद मां मंजू का प्यार भी बच्चो के लिए बदल गया। जहां एक ओर पूरा गांव रो रहा था वहीं इन बच्चो की सगी मां इनको देखने तक नही आई। बेटे विक्की उर्फ अमित और बेटी सोनम की मौत की खबर भी मंजू को न पिघला पाई। जिस मां ने इन बच्चो को जन्म दिया वह इतनी पराई हो गई की उनकी मौत भी उसको न पिघला सकी। लोग बार बार यही कह रहे थे क्या एक बार भी उसको यह नही लगा की अपने बच्चो को आखिरी बार देख लूं। खैर कैसे उन्होंने अपनी ममता को मारा होगा या फिर कोई मजबूरी थी जो उसे ऐसा करने से रोक रही थी। खैर कुछ भी हो अब तो वह बच्चे दुनिया से ही जा चुके थे कोई उनके साथ कुछ भी करे। नियति में जो तय था वह तो हो ही गया। अब लोग इसे अपने हिसाब से कुछ कहे इससे कुछ बदल भी नही सकता।
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