5 साल में 3 गुना बढ़ी मखाने की खेती, मालामाल होंगे किसान, सरकार ने शुरू की यह नई पहल।
बीतें समय में काफ़ी बदलाव आए हैं। इससे 5 साल पहले मखाने की खेती लगभग 15000 हेक्टेयर तक सीमित थी। लेकिन आज इसका विस्तार लगभग 3 गुना तक हो चुका है। राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र लगातार किसानों के लिए शोध कर रहा है। किसानों को खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कृषकों के बाद अब उद्यमी भी रुचि लेने लगे हैं। यहां तक की शिक्षित बेरोजगार भी अब मखाने की परंपरागत खेती से जुड़ने लगे हैं। पहले माना जाता था कि मखाने की खेती परंपरागत रूप से सहनी समाज के लोग करते हैं। अब मखाने की खेती हर तबका करने लगा है।
मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ )TV 9 भारत समाचार (बिहार )।
सरकार ने शुरू की यह नई पहल, बिहार में मखाने की खेती का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा हैं। मखाना आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। मखाने की खेती को लेकर पहले भी कई शोध हो चुके है। मखाने की खेती में कई तरह के प्रयोग राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा द्वारा किए जा रहे हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी मखाना बोर्ड की स्थापना करने का ऐलान किया है। इस घोषणा के बाद मखाना उत्पादक किसानों में खुशी की लहर है। बिहार के मखाने की पहचान विश्व स्तर तक बन चुकी है। राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर मनोज कुमार के अनुसार, इस समय बिहार में मखाने की खेती का क्षेत्रफल लगभग 35,000 से 40,000 हेक्टेयर के बीच है।
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बीतें समय में काफ़ी बदलाव आएं हैं। इससे 5 साल पहले मखाने की खेती लगभग 15,000 हेक्टेयर तक सीमित थी। लेकिन आज इसका विस्तार लगभग तीन गुना तक हो चुका है। राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र लगातार किसानों के लिए शोध कर रहा है। किसानों को खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कृषकों के बाद अब उद्यमी भी रुचि लेने लगे हैं। पहले माना जाता था कि खेती परंपरागत रूप से सहनी समाज के लोग ही करते हैं। अब मखाने की खेती हर तबका करने लगा है।
सरकार ने मखाने की खेती से जुड़े किसानों के लिए खास पहल शुरू की है। हर साल राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र ने 1500 से ज्यादा किसानों को ट्रेनिंग देने का काम शुरू किया गया है। इस काम में केंद्र नाबार्ड, आत्मा और बिहार कृषि प्रबंधन एवं प्रसार प्रशिक्षण संस्थान की मदद भी ले रहा है। कई जिलों में किसानों को ट्रेनिंग देने का काम चल रहा है। किसानों को जो भी तकनीकी मदद चाहिए। उपलब्ध करवाई जाती है। एक जमाने मखाने की खेती सिर्फ तालाबों में होती थी। लेकिन अब खेतों में भी होने लगी है।
खेत में केवल 1 फीट पानी के अंदर भी मखाने की खेती हो सकती है। 4 से 5 महीने में ही उत्पादन लिया जा सकता है। तालाबों की संख्या को एकदम नहीं बढ़ा सकते, इसलिए नहीं तकनीक हूं के जरिए खेतों में भी मखाने का उत्पादन किया जा रहा है। इससे किसानों की आय में इज़ाफ़ा हो रहा है। अब बोर्ड बनने के बाद मखाने के उत्पादन, प्रसंस्करण मूल्य में बढ़ोतरी होगी, जिसका सीधा फ़ायदा किसानों को मिलेगा।
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