1990 में धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ उर्फ डी.वाई. चंद्रचूड़ अमेरिका में पढ़कर और नौकरी कर भारत आए।

2023 को वाराणसी के ज्ञानवापी मस्ज़िद मामले में मुस्लिम पक्ष सुप्रीम में गुहार लगाता है, और मुस्लिम पक्ष के वकील कहता है कि "1991 प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट" में किसी भी पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। इस पर 3 अगस्त 2023 को डी.वाई. चंद्रचूड़ ने ज्ञानवापी परिसर में ASI द्वारा वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने की अनुमति दी।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ)TV 9 भारत समाचार नई दिल्ली ।

1990 में धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ उर्फ डी. वाई. चंद्रचूड़ अमेरिका में पढ़कर और नौकरी कर भारत आते हैं।

स्थापित वरिष्ठ वकीलों की मदद व सहायता से फॉरेन बॉम्बे हाई कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस करने लगते हैं।

1998 में अचानक उन्हें 38 साल की उम्र में सीनियर एडवोकेट बना दिया जाता है और फिर उसी साल उन्हें सॉलिसिटर जनरल भी बना दिया जाता हैं।

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2000 में बिना किसी परीक्षा और इंटरव्यू के उन्हें मुंबई हाई कोर्ट में जज बना दिया गया।

2013 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बनें।

2016 में कॉलेजियम उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनती हैं।

2022 में सुप्रीम कोर्ट का चीफ़ जस्टिस बनाए जाते हैं।

2023 को वाराणसी के ज्ञानवापी मस्ज़िद मामले में पुलिस पक्ष सुप्रीम में गुहार लगाता है, और मुस्लिम पक्ष का वकील कहता है कि “1991 प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट” में किसी भी पूजा स्थल को, किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है।

इस पर 3 अगस्त 2023 को डी.वाई. चंद्रचूड़ ने ज्ञानवापी परिसर में ASI द्वारा वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने की अनुमति देते हुए कहा है कि “1991” के अधिनियम की धारा 3 पूजा स्थल की धार्मिक प्रकृति का पता लगाने से मन नहीं करती हैं।

चंद्रचूड़ के इस टिप्पणी के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिसंबर सन् 2023 में मथुरा के शाही ईदगाह मस्ज़िद परिसर में सर्वेक्षण की अनुमति दे दी हैं।

इसी तरह मध्य प्रदेश के कमाल मौला मस्ज़िद में भी सर्वे को लेकर विवाद बढ़ रहा है।

अब संभल की शाही जामा मस्ज़िद , अजमेर की दरगाह आदि की भी सर्वे को लेकर संवैधानिक बहुसंख्यक हिंदू समाज विवाद कर रहा हैं।

किसी भी संवैधानिक कानून, अनुच्छेद, अधिनियम की सही व्याख्या करने का अधिकार संविधान ख़ुद सुप्रीम कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों को देता हैं।

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