होली पर्व हमें हमारे व्यापक अस्तित्व की याद दिलाता है-नवीन चौबे

जीवन की संभावना अंतत: प्रकृति का ही एक दिव्य उपहार है, जो रंगों के सभी आयाम से निर्मित होली पर्व ही नहीं बल्कि जीवन का उत्साहवर्धन करने वाली ऊर्जा है।

नवीन चौबे,मंडल सह प्रभारी :गोरखपुर। भारतीय पर्व और उत्सव अक्सर प्रकृति के जीवन क्रम से जुड़े होते हैं। ऋतुओं के आने-जाने के साथ ही वे भी उपस्थित होते रहते हैं। इसलिए भारत का लोकमानस उसके साथ विलक्षण संगति बैठाता चलता है, जिसकी झलक गीत, नृत्य और संगीत की लोक-कलाओं और रीति-रिवाजों सबमें दिखती है। साझे की जिंदगी में आनंद की तलाश करने वाले समाज में ऐसा होना स्वाभाविक भी है। हमारा मूल स्वभाव तो यही सुझाता है कि हम प्रकृति में अवस्थित हैं और प्रकृति हममें स्पंदित है।

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हमारा अस्तित्ववान होना प्रकृति की ही देन है। जीवन की संभावना अंतत: प्रकृति का ही एक दिव्य उपहार है, एक अनोखा उपहार, क्योंकि सारी तकनीकी प्रगति के बावजूद अभी तक जीवन का कोई विकल्प नहीं मिल सका है। यह अलग बात है कि प्रकृति या दूसरे मनुष्यों के साथ रिश्तों को लेकर कृतज्ञता का भाव अब दुर्लभ होता जा रहा है।

फाल्गुन के महीने की पूर्णिमा से यह उत्सव पूरे भारत में शुरू होता है और बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। होली का सामुदायिक उत्सव हमें अपने समग्र अस्तित्व को जागृत करने वाला होता है। वह हमें हमारे व्यापक अस्तित्व की याद दिलाता है। आज इस तरह की बातें आसानी से हमारे ध्यान-पटल पर नहीं उतरतीं।

वहां जिन विचारों, अनुभवों और भावनाओं की आपाधापी है, उनकी भीड़ में आज न प्रकृति को आंख भर निहारने की फुरसत मिल रही है और न यह सच्चाई ही महसूस हो पा रही है कि हम मूलतः प्रकृतिजीवी हैं, पर इस सच को नहीं झुठलाया जा सकता कि जीवन निरपेक्ष नहीं होता। प्रकृति है तो ही जीवन है।

जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि और वायु जैसे तत्व जीवन के अनिवार्य प्राणदायी आधार-स्रोत हैं और आगे भी बने रहेंगे। प्रकृति माता है और हम सब पर प्रकृति का अकूत ऋण है। इस प्रकृति को चुनौती देती और मानवनिर्मित तकनीकी सब पर हावी हो रही है।

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