हिंदी के चलते फिरते विश्वविद्यालय थे: पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी

जयंती पर साहित्य सम्मेलन मे अपने प्रथम अध्यक्ष का किया श्रद्धापूर्वक स्मरण, दी गई काव्यांजलि।

मुकेश कुमार  (क्राइम एडिटर नई दिल्ली) TV9 भारत समाचार (पटना)।  खड़ी बोली हिंदी की प्रथम पीढ़ी के महान कवियों और भाषा वेदों में अग्रपांक्तेय विद्वान पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रथम सभापति थे। वह हिंदी के एक चलते-फिरते विश्वविद्यालय थे। एक क्षण के लिए भी उनके पास आए लोग हिंदी का कुछ नया सीख कर जाते थे।

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यह बातें रविवार को साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह और कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉक्टर अनिल सुलभ ने कहीं। डॉक्टर सुलभ ने कहा कि चतुर्वेदी जी अपनी पीढ़ी में अखंडित भारत के श्रेष्ठ साहित्यकारों में तो गिने ही जाते थे अत्यंत ललितपुर हास्य व्यंग के लिए हास्य रस अवतार के रूप में सर्वत्र समादृत होते थे। उनके मंच पर आते ही सभागार तालिया से गूंजायमान हो उठता था। काव्य में छंद के प्रति विशेष आग्रह रखने वाले चतुर्वेदी जी गद्य साहित्य में भी रोचक तथ्य और लालित्य के पक्षधर और हास्य व्यंग में फुहड़ता तथा व्यक्तिगत आक्षेप के प्रबल विरोधी थे। दूरदर्शन बिहार के पूर्व कार्यक्रम प्रमुख और कवि डॉक्टर ओमप्रकाश जमुआर सम्मेलन के संरक्षक सदस्य अवध बिहारी सिंह सम्मेलन के अर्थ मंत्री प्रोफेसर सुशील कुमार झा, कृष्णा रंजन सिंह, बांके बिहारी साब तथा प्रवीण कुमार पंकज ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र  की वाणी वंदना से हुआ। वरिष्ठ शायर आरपी घायल ने जीवन में मुस्कान का महत्व रेखांकित करते हुए यह शेर पड़ा कि किस  किसी की मुस्कुराहट में झलकता है जो अपनापन उसी से हौसला पाकर उदासी मुस्कुराती है। कवियत्री इन्दू उपाध्याय का कहना था कि पल-पल में उनकी याद सताए तो क्या करूं उनका ख्याल दिल से ना जाये तो क्या करूं। वरिष्ठ कवि प्रोफेसर सुनील कुमार उपाध्याय, कुमार अनुपम, जय प्रकाश पुजारी, अशोक कुमार, नरेंद्र कुमार तथा गोपाल कृष्ण मिश्रा ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि  ब्रह्मानंद पांडे ने किया। इस अवसर पर डॉक्टर रामेश्वर पंडित, अवधेश चरण मेहता, नंदन कुमार मीत, पुरुषोत्तम मिश्रा, अरविंद कुमार, राम प्रसाद निराला, श्री बाबू आदि प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।

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