राम जानकी मंदिर हमजापुर में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप एवं महाराजा सुहेलदेव की मनाई गयी जयंती

इस अवसर पर एक सरस काव्य गोष्ठी भी की गई जिसका आयोजन किया गया।

पीके पाण्डेय ,देवीपाटन मण्डल प्रभारी : बहराइच।अखिल भारतीय साहित्य परिषद् – बहराइच के तत्वावधान में प्रतिवर्ष की भांति स्थानीय राम जानकी मंदिर हमजापुर में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप तथा महाराजा सुहेलदेव की जयंती मनाई गई। साहित्य परिषद् की ओर से इस अवसर पर एक सरस काव्य गोष्ठी भी की गई जिसका आयोजन परिषद् के प्रांतीय उपाध्यक्ष गुलाब चन्द्र जायसवाल के द्वारा किया गया।

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जिसमें राम करन मिश्र ‘सैलानी’ मुख्य अतिथि थे। कवियों ने पितामह महाराणा प्रताप के पराक्रम के गीत गाये। “गिरा जहाँ तक खून वहां तक पत्त्थर पत्त्थर जिन्दा है, जिस्म नहीं है मगर नाम का अक्षर अक्षर जिन्दा है।” इन पक्तियों को हिन्दू जागरण मंच के जिलाध्यक्ष धनञ्जय सिंह ने पढ़ीं। पुण्डरीक पांडेय ने महाराणा प्रताप के शौर्य वर्णन में कहा, “आप मुकुट मेवाड़ के आप राष्ट्र के शूर, हर हिन्दू की आस तुम तुम पर हमें गुरूर।”

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के जिला महामंत्री रमेश चन्द्र तिवारी ने कहा “भारतीय इतिहास में केवल जहाँ-तहाँ ही उन घटनाओं का वर्णन है जिन पर हम गर्व कर सकते हैं किन्तु अधिकतर जगहों पर या तो हमारी कायरता लिखी है या किसी बाहरी की अधीनता में हमारा पराक्रम वर्णित है। यदि महाराणा प्रताप की तरह सभी स्वाभिमानी होते तो अफगान लुटेरे यहाँ राज न करते और न ही बच्चों महिलाओं पर अत्याचार होता।”

अनिल त्रिपाठी ने पढ़ा “कुम्भलगढ़ से राणाप्रताप हल्दीघाटी पर ठहर गया, गिरि अरावली की चोटी पर केशरिया झंडा फहर गया।” गुलाब चंद्र जायसवाल ने पढ़ा, “जिनकी शौर्य कथाओं को जग अब तक भूल न पाया है जिनका पौरुष जन-गण-मन के रग-रग में लहराया है, महाराजा सुहेलदेव ने दुशमन को मारा था गिन-गिन कर, इस विजय दिवस का झंडा सारी दुनिया में फहराया है।”

किशोरीलाल चौधरी ‘अनम’ ने पढ़ा “भारत के जवानों उठो रणभेरी बजा दो, तुम क्या नहीं कर सकते हो दुश्मन को बता दो।” देवव्रत त्रिपाठी ने गाया: “कुम्भलगढ़ में कठिन साधना राणा संग में पाया था, माता जैवन्ता ने वीर पुत्र को जाया था।” विमलेश जायसवाल ‘विमल’ ने पंक्ति पढ़ी “राणा ने रण में जो रण था किया, उस रण पर मैं अभिमान करूँ।” राधाकृष्ण पाठक ने प्रस्तुत किया “अकबर शासक की चाल सभी राणा जी ने बेकार किया, मेवाड़ मुकुट ने पराधीनता कभी नहीं स्वीकार किया।”

राजधानी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) के प्रोफ़ेसर डा. वेदमित्र शुक्ल द्वारा रचित बाल कविता-संग्रह ‘जनजातीय गौरव’ जिसमें अनेक भूले विसरे जनजातीय वीरों-वीरांगनाओं पर रचनाएँ हैं का सभा में प्रदर्शन व् संवर्धन हुआ।

इसके अतिरिक्त मनोज शर्मा, आशुतोष पांडेय, रिकू सिंह ‘राज’, श्रवण कुमार द्विवेदी, सुनील सिंह, राकेश रस्तोगी ‘विवेकी’, करन सिंह, विनोद कुमार पांडेय, अयोध्या प्रसाद नवीन, छोटे लाल गुप्त, बैजनाथ सिंह चौहान, नीरा गर्ग लोकसेनानी लखनऊ, ओम प्रकाश शुक्ल ‘राही’, शिव कुमार अग्रवाल ‘रामसेवक’ लोकभारती लखनऊ, विपिन विश्वकर्मा, हरजीव अग्रवाल, बुद्धि सागर पांडेय, विष्णुकांत श्रीवास्तव, पेशकार यादव, राम गोपाल चौधरी, अंग्रेज पांडेय, हरिश्चंद्र जायसवाल आदि ने भी अपनी रचनऐं पढ़ीं अथवा अपने विचार रखे।

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