भ्रष्टाचारी के हाथ में ग्राम पंचायतों की कमान, अफसर मालामाल, घोटाले में फंसे हैं कई ग्राम पंचायत अधिकारी
घोटालेबाज ग्रामपंचायत अधिकारी को 20 दिन में किया बहाल, जिला स्तरीय अधिकारी की जांच में हुआ था घोटाले का खुलासा
लखनऊ। यूपी के लखीमपुर-खीरी में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। घोटाले का दोषी पाए जाने के बाद भी कई डीपीआरओ ने कार्रवाई करने के बजाय दोषी ग्राम पंचायत अधिकारियों को एक-दूसरे ब्लॉक को स्थानांतरित कर बड़ी ग्राम पंचायतों में तैनाती कर दी। पलिया के बड़ागांव के ग्राम पंचायत सचिव अरुण मिश्रा की जिला स्तरीय एक अधिकारी ने जांच की थी, जिसमें लाखों रुपये के घोटाले की पुष्टि हुई। जांच रिपोर्ट पर कई रिमांडर देने के बाद डीपीआरओ ने उन्हें सस्पेंड तो कर दिया, लेकिन 20 दिन में ही बहाल कर उन्हें बिजुआ ब्लॉक में तैनाती कर दी गई। यह तो एक बानगी है। ऐसे तमाम मामले हैं, जिनमें दोषियों की फाइलें डीपीआरओ कार्यालय में दबी हुई हैं।
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लखीमपुर खीरी इन दिनों ग्राम पंचायतों में हुए गबन और घोटालों को लेकर सुर्खियों में है। आए दिन नए-नए मामले उजागर होकर सामने आ रहे हैं। ताजा मामला पलिया ग्राम पंचायत पलिया का है। पलिया विकास खंड की ग्राम पंचायत बड़ागांव में तैनाती के दौरान ग्राम पंचायत सचिव अरुण मिश्रा ने स्ट्रीट लाइट समेत ग्राम पंचायत अतरिया के खाते से विभिन्न मदों से लाखों रुपये निकाल लिए और गोल माल कर दिया। स्ट्रीट लाइट की जगह पर एलईडी बल्ब लगवा दिए। गड्ढों के नाम पर भी लाखों रुपये का वारा न्यारा कर दिया। इसकी शिकायत जागरुक लोगों ने शासन से की थी। शिकायत के बाद जिला स्तरीय एक अधिकारी से मामले की जांच कराई गई।
जांच के दौरान सचिव पर लगे सभी आरोप सही पाए गए। जांच अधिकारी ने 6,40,535 लाख रुपये घोटाले की अपनी रिपोर्ट शासन और डीपीआरओ को सौंप दी थी। बताते हैं कि आरोपी सचिव डीपीआरओ का काफी खास माना जाता है। शायद यही वजह है कि डीपीआरअो ने काफी समय तक उसकी जांच रिपोर्ट दबाए रखी, लेकिन जब रिमांडर आने शुरू हुए तो उन्होंने 14 फरवरी 2023 को उसे निलंबित कर दिया था। निलंबन के करीब 20 दिन बाद फिर उसे बहाल कर दिया और ग्राम पंचायत बिजुआ में तैनाती कर दी।बताते हैं कि मोहम्मदी विकास खंड में तैनाती के दौरान सचिव अरुण कुमार सिंह पर मनेरागा में लाखों रुपये का घोटाला करने के भी आरोप लगे है। इसी तरह ग्राम पंचायत अधिकारी हर्षित पांडेय रमियाबेहड़ में तैनात है।
डीपीआरओ कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि यह डीपीआरओ का कार्य खास है, जो अपनी नौकरी की शुरुआत से ही रमियाबेहड़ ब्लॉक में तैनात है। बताया जाता है कि हर्षित पांडेय के बिना विकास खंड रमियाबेहड़ में पत्ता तक नहीं हिल सकता है। इसी तरह ईसानगर में तैनात ग्राम विकास अधिकारी अनिल सिंह में धौरहरा में अपनी तैनाती के दौरान ग्राम प्रधान के फर्जी हस्ताक्षर बनाकर ग्राम निधि से लाखों रुपये निकाल लिए थे। इस मामले में इन पर रिपोर्ट दर्ज हुई थी और जेल भी गए थे, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप होने के बाद भी उन्हें ईसानगर ब्लॉक में तैनात किया गया है।
उधर वर्तनाम नगर पंचायत भीरा ईओ दीपक श्रीवास्तव ने विकास खंड रमिया बेहड़ के ग्राम पंचायत सचिव रहते ग्राम पंचायत चंदैयापुर, ढखेरवा नानकार और तेलियार के खातों से 1.69 करोड़ रुपये निकाल लिए थे। इसका खुलासा स्पेशल आडिट में हुआ था। लेखा परीक्षक ने गबन का आरोप लगाते हुए पत्रावली शासन और डीपीआरओ को भेजी थी, लेकिन अभी तक उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह तो मामले सिर्फ बानगी भर हैं। ग्राम पंचायत अधिकारी अहमद हसन, ग्राम विकास अधिकारी कमाल अहमद, सुधीर कुमार भी शामिल हैं।
ऐसे तमाम मामले हैं जो जिला पंचायत राज अधिकारी के कार्यालय की फाइल में दबे हुए हैं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर जिले की ग्राम पंचायतों में यह घोटाले किसकी शय पर किए जा रहे हैं। जांच में दोषी पाए जाने के बाद भी घोटालेबाजों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होना कहीं न कहीं डीपीआरओ को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर रहा है।
उच्चस्तरीय जांच हो तो फंसेंगे कई अफसर
सूत्रों ने बताया कि जिले में भ्रष्टाचार को लेकर एक सिंडीकेट काम कर रहा है। इस सिंडीकेट को जिले के कुछ आला अफसरों का भी सहयोग कर रहा है। इस सिंडीकेट में अफसरों ने अपने कुछ चेहेतों को भी शामिल कर रखा है। शासन यदि जिले की ग्राम पंचायतों की उच्च स्तरीय जांच कराए तो ग्राम पंचायत अधिकारियों के साथ ही जिले में बैठे कई अफसर भी फंसेंगे।
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